Tuesday, June 26, 2018

भय क्या है

भय क्या है,

क्या मृत्यु का भय है

"नहीं"

यह मृत्यु का भय नहीं है? मृत्यु तो अज्ञात है। वह तो अपरिचित है। उसका भय कैसे होगा? जो ज्ञात ही नहीं है, उससे संबंध भी क्या हो सकता है?

वस्तुत: जिसे हम मृत्यु का भय कहते हैं, वह मृत्यु का न होकर, जिसे हम जीवन जीवन जानते हैं, उसके खोने का डर है। जो ज्ञात है, उसके खोने का भय है। जो ज्ञात है, उससे हमारा संबंध है। वह हमारा होना बन गया है। वही हमारी सत्त बन गयी है। मेरा शरीर, मेरी संपत्ति, मेरी प्रतिष्ठ, मेरे संबंध, मेरे
संस्कार, मेरे विश्वास, मेरे विचार-यही मेरे 'मैं' के प्राण बन गये हैं। यही 'मैं' हो गया है। मृत्यु इस 'मैं' को छीन लेगी। यही भय है।
इस सबको इकट्ठा किया जाता है, भय से बचने, सुरक्षा पाने को और होता उलटा है- इसे खोने की आशंका ही भय बन जाती है। मनुष्य साधारणत: जो भी करता है, वह सब जिसके लिए किया जाता है, उसके विपरीत चलता है।

आज्ञान से आनंद के लिए उठाये गये सब कदम दुख में ले जाते हैं। अभय के लिए किया गया कार्य और भय में ले जाता है।

 
जो 'स्व' की प्राप्ति मालूम होती है, वह 'स्व' नहीं है। यदि इस सत्य के प्रति जागना हो जाये- यदि मैं यह जान सकूं कि जिसे मैंने 'मैं' जाना है, वह 'मैं' नहीं हूं और इस क्षण भी मेरे तादात्म्य से मैं भिन्न और पृथक हूं, तो भय विसर्जित हो जाता है। मृत्यु में जो "मैं" नहीं है, वही खोता है।

इस सत्य को जानने के लिए कोई क्रिया, कोई उपाय नहीं करना है। केवल उन-उन तथ्यों को जानना है, उन-उन तथ्यों के प्रति जागना है, जिन्हें मैं समझता हूं कि 'मैं' हूं- जिनसे मेरा संबंध है। जागरण संबंध तोड़ देता है। जागरण 'स्व' और 'पर' को पृथक कर देता है। 'स्व' और 'पर' का नहीं जानना ही भय है और उनका पृथक बोध भय-मुक्ति है-अभय है।

Satsangwithparveen.blogspot.com

No comments:

Post a Comment