Friday, April 26, 2019

उसे कैसे पाएं, इस माया से निकल कर???

जीवन में दुख ही दुख है, जहां देखूं माया ही नजर आती है, फिर परमात्मा जोंदिखता नहीं है उसे कैसे पाएं, इस माया से निकल कर???

जैसे अंधेरे में कोई रस्सी साँप दिखती है। कुछ उसे देखकर भागते हैं, कुछ लड़ने की तैयारी करते हैं। दोनों ही भूल में हैं, क्योंकि दोनों ही उसे स्वीकार कर लेते हैं। कोई निकट जाता है और पाता है कि साँप है ही नहीं। ऐसे ही माया है जिसे तुमने सांप मान लिया है कोई इस से लड़ता है तो कोई इस से दूर भागता है, जो इसको समझना चाहता है उसे कुछ करना नहीं होता, केवल निकट भर जाना होता है। ओर ये सब स्वयं से ही प्रारम्भ होता है ।

मनुष्य को अपने निकट भर जाना है। मनुष्य में जो भी है, सबसे उसे परिचित होना है। किसी से लड़ना नहीं है और मैं कहता हूँ कि बिना लड़े ही विजय घर आ जाती है।

स्व-चित्त से ही स्व-जागरण है, यही जीवन विजय का सूत्र है।