Tuesday, July 21, 2015

अर्जी

हे प्रियतम अक्षरातीत ! मेरे हृदयरूपी घरमें आप पधारें. इस संसाररूपी परदेसमें मुझे अकेली छोड.कर आप कहाँ चले गए हैं ?

मैं तो अज्ञाानकी निद्रामें सो रही थी. आप अज्ञाानरूपी रात्रिमें मुझे अकेली सोई हुई छोड.कर कहाँ चले गए ? (अज्ञाानरूपी निद्रासे) जागृत होकर देखा तो प्रियतम धनी पास ही नहीं हैं..

हे धनी ! मैं व्याकुल होकर आपसे विनयपूर्वक प्रार्थना करती हूँ कि कृपया आप इसी क्षण मेरे हृदय मन्दिरमें पधारें. मेरे मनके सभी मनोरथ पूर्ण करें, मैं आपके श्री चरणोंमें सर्मिपत होती हुं.

प्रणाम जी

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