कामी अनन्त बार मरता है जितनी कामना उतनी बार मृत्यु | क्योंकि जितनी बार कामना उतनी बार जन्म | जीवात्मा की हर कामना एक जन्म बन जाती है | जैसे जंग लोहे से उत्पन्न हो कर उसी को खाते है, उसी प्रकार साधनात्मक अनुशासन का उल्लघंन करने वाले मनुष्य के कर्म उसे दुर्गति को पहुंचाते है ..
प्रणाम जी
प्रणाम जी
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