Thursday, September 10, 2015

परमात्मा का घर कैसा है

अछरातीत के मोहोल में , प्रेम इस्क बरतत ।
सो सुध अक्षर को नहीं , जो किन विध केलि करत ।।

अक्षरातीत परब्रह्म के रंगमहल में अनन्य प्रेम (इश्क) की सर्वदा ही लीला होती रहती है । अक्षरातीत अपनी प्रियाओं (आत्माओं) से किस प्रकार प्रेम की लीला करते हैं, इसकी जानकारी अक्षर ब्रह्म को भी नहीं थी ।
परमधाम भी अक्षरातीत परमात्मा के समान नूरमयी, मनोहारिणी व अत्यधिक प्रकाशमान है । वहाँ प्रत्येक वस्तु में चार गुण हैं- चेतनता, नूर (तेज), कोमलता और सुगन्धि । वहाँ की हर वस्तु अक्षरातीत का ही स्वरूप है, उन्हीं के समान चेतन और उनकी प्रेम की लीला में भली प्रकार सम्मिलित होती है । प्रत्येक वस्तु प्रेम और आनन्द के रस से ओत-प्रोत  है ।
(सिर्फ समझाने के लिय शब्दों का प्रयोग किया गया है वास्तव मे तो कुछ और ही है...वहां का आनंद तो शब्दातीत है...याहां के शब्दो में ऐसा कह सकते हैं)

प्रेम प्रणाम जी

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