ता पीछे आये रास में, इण्ड जोगमाया जाग्रत।
जहां विरह विलास दोऊ, देख के फिरे इत।।
(श्री बीतक)
अक्षरातीत योगमाया के जागृत ब्रह्माण्ड में आये। वहाँ उन्होंने अपनी अंगरूपा आत्माओं के साथ महारास की लीला की। इसमें सखियों ने विरह तथा प्रेम के विलास का प्रत्यक्ष अनुभव किया। इसके पश्चात् धाम धनी अपनी आत्माओं के साथ पुनः परमधाम आ गये।
भेद--
आनन्द योगमाया (केवल ब्रह्म) के ब्रह्माण्ड में महारास की लीला हुई, जो परमधाम तथा कालमाया दोनों से भिन्न था।
एह सरूप ने एह वृन्दावन, एह जमुना त्रट सार।
घरथी तीत ब्रह्माण्डथी अलगो, ते तारतमे कीधो निरधार।। रास 10/36
अक्षरातीत ने अक्षरब्रह्म को परमधाम की लीला दिखाने के लिये अपने आवेश द्वारा महारास की लीला की।
फेर मूल सरूपें देख्या तित, ए दोऊ मगन हुए खेलत।
जब जोस लियो खेंच कर, तब चित्त चौंक भई अछर।। प्र.हि. 37/42
कौन बन कौन सखियां कौन हम, यों चौंक के फिरी आतम।
मूल स्वरूप अक्षरातीत ने जब श्रीकृष्ण जी के तन से अपना जोश खींचा तो अक्षरब्रह्म को यह पता चला कि मैं परमधाम में नहीं, बल्कि अपने ही योगमाया के ब्रह्माण्ड में धनी की प्रेममयी लीला देख रहा हूँ।
इस अवस्था में सखियों को भी श्रीकृष्ण जी का तन नहीं दिखायी दिया। पुनः धनी के द्वारा जोश दिये जाने पर लीला प्रारम्भ हुई तथा सबकी इच्छा को पूर्ण कर वे परमधाम वापस ले गये।
प्रणाम जी
जहां विरह विलास दोऊ, देख के फिरे इत।।
(श्री बीतक)
अक्षरातीत योगमाया के जागृत ब्रह्माण्ड में आये। वहाँ उन्होंने अपनी अंगरूपा आत्माओं के साथ महारास की लीला की। इसमें सखियों ने विरह तथा प्रेम के विलास का प्रत्यक्ष अनुभव किया। इसके पश्चात् धाम धनी अपनी आत्माओं के साथ पुनः परमधाम आ गये।
भेद--
आनन्द योगमाया (केवल ब्रह्म) के ब्रह्माण्ड में महारास की लीला हुई, जो परमधाम तथा कालमाया दोनों से भिन्न था।
एह सरूप ने एह वृन्दावन, एह जमुना त्रट सार।
घरथी तीत ब्रह्माण्डथी अलगो, ते तारतमे कीधो निरधार।। रास 10/36
अक्षरातीत ने अक्षरब्रह्म को परमधाम की लीला दिखाने के लिये अपने आवेश द्वारा महारास की लीला की।
फेर मूल सरूपें देख्या तित, ए दोऊ मगन हुए खेलत।
जब जोस लियो खेंच कर, तब चित्त चौंक भई अछर।। प्र.हि. 37/42
कौन बन कौन सखियां कौन हम, यों चौंक के फिरी आतम।
मूल स्वरूप अक्षरातीत ने जब श्रीकृष्ण जी के तन से अपना जोश खींचा तो अक्षरब्रह्म को यह पता चला कि मैं परमधाम में नहीं, बल्कि अपने ही योगमाया के ब्रह्माण्ड में धनी की प्रेममयी लीला देख रहा हूँ।
इस अवस्था में सखियों को भी श्रीकृष्ण जी का तन नहीं दिखायी दिया। पुनः धनी के द्वारा जोश दिये जाने पर लीला प्रारम्भ हुई तथा सबकी इच्छा को पूर्ण कर वे परमधाम वापस ले गये।
प्रणाम जी
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