धंन धंन सखी मेरे भयो उछरंग, धंन धंन सखियों को बाढयो रस रंग।
धंन धंन सखी मैं जोवन मदमाती, धंन धंन धामधनीसों रंगराती ।।
हे सखी ! मेरे मनमें परमात्माके प्रति प्रेम उमड. रहा है. उसमें आनन्द रसका आवेग छलक रहा है. उनके दूारा दिय ग्यान प्रेम व सत्य मार्ग रूपी यौवनकी मस्तीमें मग्न होकर परमात्माके रङ्गमें रंगी हुई मैं धन्य हो गई...
प्रणाम जी
धंन धंन सखी मैं जोवन मदमाती, धंन धंन धामधनीसों रंगराती ।।
हे सखी ! मेरे मनमें परमात्माके प्रति प्रेम उमड. रहा है. उसमें आनन्द रसका आवेग छलक रहा है. उनके दूारा दिय ग्यान प्रेम व सत्य मार्ग रूपी यौवनकी मस्तीमें मग्न होकर परमात्माके रङ्गमें रंगी हुई मैं धन्य हो गई...
प्रणाम जी
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