Thursday, September 3, 2015

धंन धंन सखी मेरे भयो उछरंग

धंन धंन सखी मेरे भयो उछरंग, धंन धंन सखियों को बाढयो रस रंग।
धंन धंन सखी मैं जोवन मदमाती, धंन धंन धामधनीसों रंगराती ।।

हे सखी ! मेरे मनमें परमात्माके प्रति प्रेम उमड. रहा है. उसमें आनन्द रसका आवेग छलक रहा है. उनके दूारा दिय ग्यान प्रेम व सत्य मार्ग रूपी यौवनकी मस्तीमें मग्न होकर परमात्माके रङ्गमें रंगी हुई मैं धन्य हो गई...

प्रणाम जी

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