सुप्रभात जी
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते
मनसा स्मरन् ।
इन्द्रियार्थान्
विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥
भावार्थ : जो मूढ़ बुद्धि मनुष्य समस्त
इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन
से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन
करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात
दम्भी कहा जाता है॥
यस्त्विन्द्रिया
णि मनसा नियम्यारभतेऽर्ज ुन ।
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स
विशिष्यते ॥
भावार्थ : किन्तु हे अर्जुन! जो पुरुष मन से
इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ
समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग
का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है॥
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प्रणाम जी
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते
मनसा स्मरन् ।
इन्द्रियार्थान्
विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥
भावार्थ : जो मूढ़ बुद्धि मनुष्य समस्त
इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन
से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन
करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात
दम्भी कहा जाता है॥
यस्त्विन्द्रिया
णि मनसा नियम्यारभतेऽर्ज ुन ।
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स
विशिष्यते ॥
भावार्थ : किन्तु हे अर्जुन! जो पुरुष मन से
इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ
समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग
का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है॥
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प्रणाम जी
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