Wednesday, October 28, 2015

ए झूठी रवेसें और हैं, और अर्स में और न्यामत।
ए किया निमूना अर्स जानने, पर बने ना तफावत।।

कालमाया के इस झूठे ब्रह्माण्ड की लीला अलग प्रकार की है तथा परमधाम में नूरी शोभा, सौन्दर्य, चेतनता, आदि की सम्पदा रूप लीला अलग प्रकार की है। यद्यपि इस ब्रह्माण्ड की रचना परमधाम को समझने के लिये ही की गयी है, किन्तु तारतम ज्ञान के न होने से परमधाम और जगत् में भेद करना विद्वानों के लिये सम्भव नहीं हो पाता।
यह जगत् असत जड़ और दुःखमय है, जबकि परमधाम सत्, चित् और आनन्दमय है। तारतम ज्ञान के न होने से विद्वतजनों ने इस संसार में सच्चिदानन्दमय परब्रह्म का निवास मान रखा है। कईयों ने तो इस जगत् को ही ब्रह्मरूप माना है। वे यजुर्वेद के कथन ‘आदित्यवर्णं तमसस्परस्तात्’ को भी अमान्य कर देते हैं। ऐसी स्थिति में स्वलीला अद्वैत परमधाम और त्रिगुणात्मक जगत् में भेद दर्शाना तारतम ज्ञान के बिना सम्भव नहीं है..

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment