Thursday, October 8, 2015

मै छिपूंगा तुमसे

मैं छिपोंगा तुमसे, तुम पाए न सको मुझ।
न पाओ तरफ मेरीय को, ऐसा खेल देखाऊं गुझ।।

हम सब आत्मयें परमात्मा का अंग है याने आनंद का अंग क्योंकि ब्रह्म  ही आनंद है ,जब हमे परमात्मा इस जगत रूपी खेल में भेज रहे थे तो उन्होंने हमे कहा था की जब तुम वहां जाओगे  तो मै तुमसे छिप जाऊंगा क्योंकि यहाँ तो तुम आनंद का ही अंग हो यहाँ आनंद में निरंतर वृद्धि की लीला होती है यहाँ तुमे क्षीण की लील का नही पता  पर वहां मै आनंद रूप में लीला नही करता वहां मै जड़ में निरंतर क्षीण की लीला करता हु उस क्षीणता को ही काल  कहा जाता है वहा जाते ही तुम आनंद से दूर हो जोगी क्योंकि वहां आनंद नही है इसलिए मै तुमसे छिप जाऊंगा अर्थात तुमे दिखाई नही दूंगा और तुम्हारी दृष्टि क्योंकि उस जड़ तत्व की और होगी इसलिए तुम मुझे उसमे ही तलाश करोगी इसलिए मै तुम्हे नही मिलूँगा या तुम मुझे पा नही सकोगी पर मै तुमसे एक क्षण भी दूर नही हूँ क्योंकि तुम मेरा ही अंग हो इसलिए मै तुम में ही हूँ अर्थात मै और  तुम अलग नही है मै तुम में घुला हुआ हूँ इसलिए मै तुम ही हूँ कहने का अर्थ यह है की जब तक तुम अपने आप में नही आवोगे स्वयम की पहचान नही करोगे तब तक मुझे केसे अपने में महसूस कर  सकोगे
इसलिए तुमे मेरी तरफ आने का मार्ग भी नही मिलेगा क्योंकि तुम मेरी तरफ अर्थात अपने में नही आओगे मै तुम्हे ऐसा गुझ अर्थात गहरा खेल दिखने जा रहा हूँ  ...
और साथ जी सच में खेल ऐसा ही है ...

प्रणाम जी 

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