Tuesday, October 13, 2015

अपने ह्रदय का परदा हटायें.

सुप्रभात जी

शास्त्रों व सभी धर्म ग्रन्थो के अनुसार संसार में बुद्धिमान व्यक्ति वही माना जाता है जो आत्मा में निवास करता है। जिसने आत्म-साक्षात्कार को जीवन-लक्ष्य के रूप में चुना और आत्म-सत्य की  अभिज्ञव्यक्ति को जीवन का स्वरूप प्रदान किया। आत्मा के गुणों को अपने जीव के स्वभाव में उतारा और आत्मा का आदेश-पालन ही एक मात्र कर्तव्य-रूप में निर्धारित किया। हमें चाहिए कि आत्मा का अनुसंधान करें। परमात्मा ही सत्य है। यहाँ जो भी है, जो हमें दिखता है अथवा नहीं दिखता, उस सब का आदि मूल वही परमात्मा है। उसे ही परमेश्वर, परब्रह्म, परमात्मा आदि नामों से संबोधित किया जाता है। वह एक दिव्य चेतन पुरूष है। हम किसी भी नाम से पुकारें, किसी भी मार्ग से प्राप्त करें, इसमें कोई अंतर नहीं। असली चीज है उसकी प्राप्ति। उसकी प्राप्ति के पश्चात् हम देखेंगे कि जो वस्तु हमने प्राप्त की है, वह हमारी सत्ता और जगत-सत्ता  का मूलभूत सत्य है और उसकी प्राप्ति के हित हमारे जीव ने जो कष्ट उठाये, जो त्याग किये, तपस्याएँ कीं, बलिदान किये, यंत्रणाएँ सहीं, अपने आपको मिटाया,, हानि स्वीकार की, अपमान के घूंट पिये, वह सब- जो हमने पाया उसकी प्राप्ति की तुलना में नहीं के बराबर है।
व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति में अपना समय नष्ट न करें।  जो समय मिले उसे इश्वरोपासना में, परमात्मा की प्राप्ति में लगायें....अपने ह्रदय का परदा हटायें.

प्रणाम जी

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