Tuesday, November 10, 2015

अखंड दिपक..

सुप्रभात जी

मेरा दिपक बडा निराला है मेरे आत्म ह्रदय को दमकाता है |
कैसे करूं इसका महिमा वर्णन ये अन्नत सूर्यों को चमकाता है ||
इस दिपक कि महिमा न्यारी जिसको इसकी पहचान है |
बलीहारी हैं वो पतंगे इसपर वो कोटि बार
कुरबान हैं ||
इस दिपक कि ज्योती से ही ,शब्द रूप झन्कार है |
इसकी लौ मे भरमित होतो ,साकार और निराकार है ||

इसकी लौ से प्रेम बढ़े तो ,पलमे अपना करलेती है |
दुखमाया से दूर हटा कर ,अखंड आनंद घरदेती है
||

परइसको पाओगे कैसे ,ये सबसे कठिन सवाल है |
बेदो मेंभी नेती नेती ,सब शब्द रूप जंजाल हैै ||

कोइ ढुंडे मन्दिर मस्जिद, झुक झुक सजदे बजाते है |
कोइ पहाड पानी गुफा में बैठे ,मिलनेकी आस लगाते हैं ||

कइ पंचभौतिक में आस लगाके ,जीवनभर सेवा करते हैं |
उसीतनमें भरमित होरहते ,खालीहाथ ही मरते हैं ||

पर वो दिपक तो सबसे न्यारा, ऐसे ना कोइ पायेगा |
आत्म ह्रदय में झाकोंगे गर ,सवतः ही मिलजायगा ||

बाहर का दिया तो एक पल का है , अगले पल बुझजायगा |
अंदरका दिया  एकबार दिखातो अखंड प्रकाश  जगमगायगा...

जिसने भी पाया है अबतक, उनकी बात मतवाली है
हरपल मे आनंदित हैं वो ,हर दिन फिर दिवाली है..

(दीप से दीप जलाओ जागो और जगाओ)
आप सबको दिपावली की ह्रदय दिपक से शुभकामनायें...

प्रणाम जी

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