असत मंडलमें सब कोई भूल्या, पर अखंड किने न बताया ।
नींदका खेल खेलत सब नींदमें, जागके किने न देखाया ।।
यहां सब जीव व आत्मायें अपने को सत्य ना जान कर खुद को असत्य ही मानने लगे है कयोंकी खुद को नही जानते और और असत्य से पार का प्रयास भी नही करते कयोंकी असत्य में सुख खोजने में इतने व्यस्त हो रहे हैं की आनंद को खोजना ही नही चाहते इसलिय इस असत मंडल में सब भूले हुय खेल रहे हैं यही कारण है की अखंड याने सत्य को बताने वाला यहां कोइ भी नही है..ये सब संसार नीदं का ही खेल है सब नींद मे ही खेल रहे हैं कीसी ने भी जाग के नही बताया की परम सत्य का भी सत्य कया है कयोंकी जो जाग गया है उसे नींद का आभास नही रहता और जो नींद में हैं उन्हे जागने वाले कैसे दिखेंगे वो तो नींद वालो को ही पहचान पायेगा..
तुम इसी को विचारो कि सत्य क्या है और असत्य क्या है? ऐसे विचार से असत्य का त्याग करो और सत्य का आश्रय करो । जो पदार्थ आदि में न हो और अन्त में भी न रहे उसे मध्य में भी असत्य जानिये । जो अनाआदि है, और अनन्त एकरस है उसको सत्य जानिये और जो आदि अन्त में नाशरूप है उसमें जिसको प्रीति है और उसके राग से जो रञ्जित है वह मूढ़ पशु है, उसको विवेक का रंग नहीं लगता ।
प्रणाम जी
नींदका खेल खेलत सब नींदमें, जागके किने न देखाया ।।
यहां सब जीव व आत्मायें अपने को सत्य ना जान कर खुद को असत्य ही मानने लगे है कयोंकी खुद को नही जानते और और असत्य से पार का प्रयास भी नही करते कयोंकी असत्य में सुख खोजने में इतने व्यस्त हो रहे हैं की आनंद को खोजना ही नही चाहते इसलिय इस असत मंडल में सब भूले हुय खेल रहे हैं यही कारण है की अखंड याने सत्य को बताने वाला यहां कोइ भी नही है..ये सब संसार नीदं का ही खेल है सब नींद मे ही खेल रहे हैं कीसी ने भी जाग के नही बताया की परम सत्य का भी सत्य कया है कयोंकी जो जाग गया है उसे नींद का आभास नही रहता और जो नींद में हैं उन्हे जागने वाले कैसे दिखेंगे वो तो नींद वालो को ही पहचान पायेगा..
तुम इसी को विचारो कि सत्य क्या है और असत्य क्या है? ऐसे विचार से असत्य का त्याग करो और सत्य का आश्रय करो । जो पदार्थ आदि में न हो और अन्त में भी न रहे उसे मध्य में भी असत्य जानिये । जो अनाआदि है, और अनन्त एकरस है उसको सत्य जानिये और जो आदि अन्त में नाशरूप है उसमें जिसको प्रीति है और उसके राग से जो रञ्जित है वह मूढ़ पशु है, उसको विवेक का रंग नहीं लगता ।
प्रणाम जी
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