सुप्रभात जी
"""वैराग्य कितने प्रकार का होता है""
Satsangwithparveen.blogspot.com
योगदर्शन में पर और अपर भेद से दो प्रकार के वैराग्य बतलाये गये हैं । इनमें अपर वैराग्य चार प्रकार के हैं:
1) यतमान : जिसमें विषयों को छोड़ने का प्रयत्न तो रहता है, किन्तु छोड़ नहीं पाता यह यतमान वैराग्य है ।
2) व्यतिरेकी : शब्दादि विषयों में से कुछ का राग तो हट जाये किन्तु कुछ का न हटे तब व्यतिरेकी वैराग्य समझना चाहिए ।
3) एकेन्द्रिय : मन भी एक इन्द्रिय है । जब इन्द्रियों के विषयों का आकर्षण तो न रहे, किन्तु मन में उनका चिन्तन हो तब एकेन्द्रिय वैराग्य होता है । इस अवस्था में प्रतिज्ञा के बल से ही मन और इन्द्रियों का निग्रह होता है ।
4) वशीकार : वशीकार वैराग्य होने पर मन और इन्द्रियाँ अपने अधीन हो जाती हैं तथा अनेक प्रकार के चमत्कार भी होने लगते हैं। यहाँ तक तो ‘अपर वैराग्य’ हुआ ।
पर वैराग्य-
जब गुणों का कोई आकर्षण नहीं रहता, सर्वज्ञता और चमत्कारों से भी वैराग्य होकर स्वरुप में स्थिति रहती है तब ‘पर वैराग्य’ होता है अथवा एकाग्रता से जो सुख होता है उसको भी त्याग देना, गुणातीत हो जाना ही ‘पर वैराग्य’ है |
प्रणाम जी
"""वैराग्य कितने प्रकार का होता है""
Satsangwithparveen.blogspot.com
योगदर्शन में पर और अपर भेद से दो प्रकार के वैराग्य बतलाये गये हैं । इनमें अपर वैराग्य चार प्रकार के हैं:
1) यतमान : जिसमें विषयों को छोड़ने का प्रयत्न तो रहता है, किन्तु छोड़ नहीं पाता यह यतमान वैराग्य है ।
2) व्यतिरेकी : शब्दादि विषयों में से कुछ का राग तो हट जाये किन्तु कुछ का न हटे तब व्यतिरेकी वैराग्य समझना चाहिए ।
3) एकेन्द्रिय : मन भी एक इन्द्रिय है । जब इन्द्रियों के विषयों का आकर्षण तो न रहे, किन्तु मन में उनका चिन्तन हो तब एकेन्द्रिय वैराग्य होता है । इस अवस्था में प्रतिज्ञा के बल से ही मन और इन्द्रियों का निग्रह होता है ।
4) वशीकार : वशीकार वैराग्य होने पर मन और इन्द्रियाँ अपने अधीन हो जाती हैं तथा अनेक प्रकार के चमत्कार भी होने लगते हैं। यहाँ तक तो ‘अपर वैराग्य’ हुआ ।
पर वैराग्य-
जब गुणों का कोई आकर्षण नहीं रहता, सर्वज्ञता और चमत्कारों से भी वैराग्य होकर स्वरुप में स्थिति रहती है तब ‘पर वैराग्य’ होता है अथवा एकाग्रता से जो सुख होता है उसको भी त्याग देना, गुणातीत हो जाना ही ‘पर वैराग्य’ है |
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment