Thursday, December 31, 2015

अखंड़ आनंद की प्राप्ति हो

सुप्रभात जी

यह सम्पूर्ण जगत् मोहात्मक है , जो त्रिगुणात्मिका अव्यक्त प्रकृति से प्रगट हुआ है । प्रेम का शुद्ध स्वरूप त्रिगुणातीत होता है । जब इस त्रिगुणात्मक जगत में प्रेम नहीं तो आनन्द भी नहीं, क्योंकि आनन्द का स्वरूप तो प्रेम में ही समाहित होता है । आनन्द के बिना शान्ति की कल्पना भी व्यर्थ है ...

ब्रह्मानन्द का अनुभव करने वाला मनुष्य ब्रह्मा और इन्द्र आदि देवगणों को भी तिनके के समान तुच्छ समझता है । उस परमानन्द के समक्ष उसे तीनो लोकों का राज्य भी फीका प्रतीत होता है । वास्तविक और विशुद्ध आनन्द तो परमात्मा ही है । वह ब्रह्मानन्द  निरन्तर बढ़ता ही जाता है । उसको छोड़कर और सभी सुख तो क्षणिक ही हैं । अतः सभी को उसी सच्चिदानन्द परब्रह्म में मन लगाना चाहिए ।" ( वैराग्य शतक ३७-४० )
नव वर्पष पर आपको सत्य एवंम अखंड़ आनंद की प्राप्ति हो उस आनंद मे आपको किसी मनोकामना की कामना ही नही रहेगी सदा आनंद मंगल मे रहिए..
"आनन्दं ब्रह्म इति व्यजानात।"
मैं इस बात को जान गया कि आनन्द ही ब्रह्म है।
( तैत्तिरीय उपनिषद )
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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