सुप्रभात जी
अरे चंचल जीव ! तू इधर - उधर क्यों भटक रहा है ? तूने कूकर, शूकर, कीट पतंगादि अनन्त शरीर धारण किये | अनंत स्त्री, पति, पुत्र बनाये, एवं अब भी बनाता जा रहा है | किंतु तू जिस दिव्यानंद को चाहता है, वह कहाँ है, यह नहीं सोच पाता | अरे जीव सुन ! वेद - पुराणादि द्वारा यह निर्विवाद सिद्ध है कि वह परमानन्द एकमात्र तेरी शरणागति व प्रेम मार्ग से ही प्राप्त हो सकता है | जब तू उनको भलीभांती शुक्ष व अन्नत रूप मे जानकर अन्नय प्रेमभाव से उनको धारण करेगा तब वे अपनी अनुकम्पा द्वारा तुझे अनन्त काल के लिए आनन्दमय कर देंगे; इस प्रकार तेरी सब बिगड़ी बन जायेगी |
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
अरे चंचल जीव ! तू इधर - उधर क्यों भटक रहा है ? तूने कूकर, शूकर, कीट पतंगादि अनन्त शरीर धारण किये | अनंत स्त्री, पति, पुत्र बनाये, एवं अब भी बनाता जा रहा है | किंतु तू जिस दिव्यानंद को चाहता है, वह कहाँ है, यह नहीं सोच पाता | अरे जीव सुन ! वेद - पुराणादि द्वारा यह निर्विवाद सिद्ध है कि वह परमानन्द एकमात्र तेरी शरणागति व प्रेम मार्ग से ही प्राप्त हो सकता है | जब तू उनको भलीभांती शुक्ष व अन्नत रूप मे जानकर अन्नय प्रेमभाव से उनको धारण करेगा तब वे अपनी अनुकम्पा द्वारा तुझे अनन्त काल के लिए आनन्दमय कर देंगे; इस प्रकार तेरी सब बिगड़ी बन जायेगी |
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