"कोषों का कोष है हृदय"
सुप्रभात जी
हृदय चार चिजो से मिलकर बना है ,वेहैं - मन, चित, बूद्धि और अहंकार ..हम अपने संसार के धन के कोष की रक्षा बहोत सजकता से करते हैं , पर हर जीव के लिय सबसे बडा धन उसका यह हृदय कोष है इसे ही अंतःकरण कहते हैं , हमे इसकी हमेशा रक्षा करनी चाहिय ,इसपर हमेषा ग्यान व विवेक का पहरा बैठा कर रखें नही तो पांच चोर हमेशा इसमे सेंधमारी करते रहते हैं...कयोंकी इच्छा हुई तो सोचो कि ‘इच्छा के अनुसार कर्म करें या बुद्धि से सोच के कर्म करें ?’ इच्छा हुई, फिर मन से उसको सहमति दी और इच्छा के अनुरूप मन करना चाहता है तो धीरे-धीरे बुद्धि दब जायेगी। बुद्धि का राग-द्वेष का भाग उभरता जायेगा, समता मिटती जायेगी। अगर विवेकसे और आत्मग्यान का विचार करके बुद्धि को बलवान बनायेंगे और समता बढ़ाने वाला, मुक्तिदायी जो काम है वह करेंगे तो बुद्धि और समता बढ़ेगी लेकिन मन का चाहा हुआ काम करेंगे तो बुद्धि और समता का नाश होता जायेगा। कुत्ते, गधे, घोड़े, बिल्ले, पेट से रेंगने वाले तुच्छ प्राणी और मनुष्य में क्या फर्क है ?
वसिष्ठजी कहते हैं- हे रामजी ! कभी ये मनुष्य थे लेकिन जैसी इच्छा हुई ऐसा मन को घसीटा और बुद्धि उसी तरफ चली गयी तो धीरे धीरे दुर्बुद्धि होकर केँचुए, साँप और पेट से रेंगने वाले प्राणियों की योनियों में पड़े हैं।
इसी प्रकार की और भी कई योनियाँ हैं। यह चार दिन की जिंदगी है, अगर इसको सँभाला नहीं तो चौरासी लाख जन्में की पीड़ाएँ सहनी पड़ती हें।
रक्षत रक्षत कोषानामपि कोषें हृदयम्।
यस्मिन सुरक्षिते सर्वं सुरक्षितं स्यात्।।
‘जिसके सुरक्षित होने से सब सुरक्षित हो जाता है, वह कोषों का कोष है हृदय। उसकी रक्षा करो, रक्षा करो।
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
सुप्रभात जी
हृदय चार चिजो से मिलकर बना है ,वेहैं - मन, चित, बूद्धि और अहंकार ..हम अपने संसार के धन के कोष की रक्षा बहोत सजकता से करते हैं , पर हर जीव के लिय सबसे बडा धन उसका यह हृदय कोष है इसे ही अंतःकरण कहते हैं , हमे इसकी हमेशा रक्षा करनी चाहिय ,इसपर हमेषा ग्यान व विवेक का पहरा बैठा कर रखें नही तो पांच चोर हमेशा इसमे सेंधमारी करते रहते हैं...कयोंकी इच्छा हुई तो सोचो कि ‘इच्छा के अनुसार कर्म करें या बुद्धि से सोच के कर्म करें ?’ इच्छा हुई, फिर मन से उसको सहमति दी और इच्छा के अनुरूप मन करना चाहता है तो धीरे-धीरे बुद्धि दब जायेगी। बुद्धि का राग-द्वेष का भाग उभरता जायेगा, समता मिटती जायेगी। अगर विवेकसे और आत्मग्यान का विचार करके बुद्धि को बलवान बनायेंगे और समता बढ़ाने वाला, मुक्तिदायी जो काम है वह करेंगे तो बुद्धि और समता बढ़ेगी लेकिन मन का चाहा हुआ काम करेंगे तो बुद्धि और समता का नाश होता जायेगा। कुत्ते, गधे, घोड़े, बिल्ले, पेट से रेंगने वाले तुच्छ प्राणी और मनुष्य में क्या फर्क है ?
वसिष्ठजी कहते हैं- हे रामजी ! कभी ये मनुष्य थे लेकिन जैसी इच्छा हुई ऐसा मन को घसीटा और बुद्धि उसी तरफ चली गयी तो धीरे धीरे दुर्बुद्धि होकर केँचुए, साँप और पेट से रेंगने वाले प्राणियों की योनियों में पड़े हैं।
इसी प्रकार की और भी कई योनियाँ हैं। यह चार दिन की जिंदगी है, अगर इसको सँभाला नहीं तो चौरासी लाख जन्में की पीड़ाएँ सहनी पड़ती हें।
रक्षत रक्षत कोषानामपि कोषें हृदयम्।
यस्मिन सुरक्षिते सर्वं सुरक्षितं स्यात्।।
‘जिसके सुरक्षित होने से सब सुरक्षित हो जाता है, वह कोषों का कोष है हृदय। उसकी रक्षा करो, रक्षा करो।
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प्रणाम जी
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