Friday, January 15, 2016

परमात्मा पूर्ण है

सुप्रभात जी

पूर्णात पूर्णम उदच्यते पूर्णस्य पूर्नणम आदाय पूर्णम एवावशिश्यते (ईशोपनिषद, मंगलाचरण) ।

परमात्मा पूर्ण है , वह पूर्ण आनंद का सत्रोत उनका सब कुछ पूर्ण है । उनका भंडार कभी समाप्त नहीं होता है ..उनमें से उतना लेने पर भी वो पूर्ण ही है. परमात्मा सवंय आनंद है ऐसा नही है की उनमे आनंद है..वो आनंद का ही शुद्ध साकार रूप है ,जो पूर्ण सोंदर्य के शुद्ध साकार रूप मे ,अपने अन्नत आनंद के शुद्ध सोंदर्य के अन्नत विस्तार (परमधाम)  में आनंद परवाह रूप में सदा पूर्ण रूप से दर्श्यमान शुद्ध साकार रूप में रहते हैं , वो अकेले नहीं ही है वो शुद्ध चेतन है. इसलिय उनसे चेतन आनंद के बारह हजार "प्रकार" के सत्रोत एक साथ प्रवाहीत रहते है . ये सदा से है , ये बारह हजार "प्रकार" के सत्रोत में एक एक प्रकार के अन्नत अन्नत सत्रोत है जो एक बार में बारह हजार "प्रकार" से शुद्ध चेतन पूर्ण सोंदर्य व अन्नत आन्नद का शुद्ध साकार स्वरूप है . ये सत्रोत सदा एक जैसे नही बहते बल्के एक एक क्षण मे अन्नत बार नवीन परवाह रूप में होते हैं ..ये बारह हजार प्रकार के पूर्ण आनंद इसलिय हैं कयोंकी इनमें एक एक प्रकार के अन्नत आनंद ,सोंदर्य व चेतनता को बारह हजार के समूह मे एक बार में दर्शाया गया हैं (ताकी बूद्धी इसविषय को बताय जाने पर कुछ ग्रहण कर ले अन्यथा ये शब्दातीत विषय है..) इस बारह हजार के समूह को भी 40-40 के आनंद समूहो में रखा जाता है. पर ये अनंतोअन्नत हैं ...इन्हे ही शब्द रूप में आत्मांये काहा जाता है जो चेतन अंश होने के कारण पूर्ण चेतन हैं. पर परमात्मा से अदूैत हैं..
परमात्मा आनंद ,चेतनता व सोन्दर्य का सत्य शुद्ध स्वरूप है उनका शुद्ध स्वरूप एक रस है अर्थात निचे से उपर ,दायें सें बायें एक रस पूर्ण आनंद हैं . इसलिय उनके हाथ पांव सर हृदय में कोई भेद नही है सब कूछ पूर्ण आनंद ही है या इसको इस प्रकार समझें की उनका एक एक अंग पूर्ण है जैसे उनका पांव देखता है , गंध गृहण कर सकता है व आनंद का सत्रोत याने उनका हृदय भी है ऐसे ही उनका हर अंग पूर्ण है ...इसलिय आत्मांओ का चरणों में रहने का या आय आय के चरणों लागी का भाव याहां की भाषा में दर्शाया गया है कयेंकी याहां की बूद्धी केवल दूैत की भाषा ही समझती है ,वहां पर चरण ,हाथ,पांव सर आदी का दूैत भाव नही है....
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प्रणाम जी.

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