सुप्रभात जी
इस आत्मजाग्रती की मनोहर ऋतु में तारतम ग्यान रूपी कोयल प्रसन्न मन से कूक रही है जो अत्यन्त मिठी व मनोहर है ..तथा जागृीत आत्मा रूपी तोते सत्य परमात्मा को पाकर आनन्द विभोर होकर आनन्द में तरह-तरह की क्रीड़ायें कर रहे हैं, किन्तु मैं ही ऐसी मन्दभाग्या हूँ, जो माया से मेरी नजर हटकर परमात्मा की और नही हो पा रही है मुझे पता भी है की संसार में मूझे सच्चा आनंद नही मिल रहा है फिर भी मैं सत्य आनंद से विमुख हो रही हूं..पर मेरा मन संसार मे भी नही लग रहा है कयोंकी मुझे पता है सच्चा आनंद केवल परमात्मा हैं इस कारण मैं संसार में आपके बिना अकेली ही अपना समय काट रही हूँ तथा रो-रोकर अपनी आँखों को लाल कर रही हूँ। ...
( यह अध्यात्म की एक स्थिती है , कई साधक इस सतर पर आकर रुक जाते हैं आगे मार्ग नजर नही आता ...इस से आगे जाने के लिय अकेला होना पडता है अर्थात जो सात्विक माया का सामान हमने लाद रखा है उसे उतार कर फैकना पडता है आत्म बल से , यही हमारे प्रेम और इमान की कसोटी है )
प्रणाम जी
इस आत्मजाग्रती की मनोहर ऋतु में तारतम ग्यान रूपी कोयल प्रसन्न मन से कूक रही है जो अत्यन्त मिठी व मनोहर है ..तथा जागृीत आत्मा रूपी तोते सत्य परमात्मा को पाकर आनन्द विभोर होकर आनन्द में तरह-तरह की क्रीड़ायें कर रहे हैं, किन्तु मैं ही ऐसी मन्दभाग्या हूँ, जो माया से मेरी नजर हटकर परमात्मा की और नही हो पा रही है मुझे पता भी है की संसार में मूझे सच्चा आनंद नही मिल रहा है फिर भी मैं सत्य आनंद से विमुख हो रही हूं..पर मेरा मन संसार मे भी नही लग रहा है कयोंकी मुझे पता है सच्चा आनंद केवल परमात्मा हैं इस कारण मैं संसार में आपके बिना अकेली ही अपना समय काट रही हूँ तथा रो-रोकर अपनी आँखों को लाल कर रही हूँ। ...
( यह अध्यात्म की एक स्थिती है , कई साधक इस सतर पर आकर रुक जाते हैं आगे मार्ग नजर नही आता ...इस से आगे जाने के लिय अकेला होना पडता है अर्थात जो सात्विक माया का सामान हमने लाद रखा है उसे उतार कर फैकना पडता है आत्म बल से , यही हमारे प्रेम और इमान की कसोटी है )
प्रणाम जी
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