Tuesday, February 16, 2016

सुप्रभात जी

विवेक सम्पन्न पुरुष एकान्त स्थानों में या लोकाकीर्ण नगरों में, सरोवरों में, वनों में या उद्यानों में, तीर्थो में या अपने घरों में, मित्रों की विलासपूर्ण क्रीड़ाओं में या उत्सव-भोजनादि समारम्भों में एवं शास्त्रों की तर्कपूर्ण चर्चाओं में आसक्ति न होने से कहीं भी लम्बे समय तक लिप्त नहीं होते। कदाचित कहीं रुकें तो तत्त्वज्ञान का ही अन्वेषण करते हैं । वे विवेकी पुरुष पूर्ण शांत, इन्द्रियनिग्रही, स्वात्मारामी, मौनी और एकमात्र विज्ञानस्वरुप ब्रह्म का ही कथन करनेवाले होते हैं । अभ्यास और वैराग्य के बल से वे स्वयं परमपदस्वरुप परमात्मा में विश्रांति पा लेते हैं । वे मनोलय की पूर्ण अवस्था में आरुढ़ हो जाते हैं । जिस प्रकार ह्रदयहीन पत्थरों को दूध का स्वाद नहीं आता, उसी प्रकार इन अलौकिक पुरुषों को विषयों में रस नहीं आता ...ये आंतरिक स्थिती है बाह्य रूप चाहे जो हो...बाह्य रूप से कभी भी आंतरिक स्थिती का परिचय नही होता...

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment