Wednesday, February 3, 2016

माया के इन परपंचो से सावधान

माया के सात्विक रूपो से सावधान..

श्रद्धातत्व अविनाशी है । अतः उन साधकों के अविनाशी सिद्धान्तों तथा वचनों पर ही श्रद्धा होनी चाहिए न कि विनाशी देह या नाम में । नाशवान् शरीर तथा नाम में तो मोह होता है, श्रद्धा नहीं । परन्तु जब मोह ही श्रद्धा का रूप धारण कर लेता है तभी ये अनर्थ होते हैं । अतः परमात्मा के शाश्वत, दिव्य, अलौकिक तथा उनके अविनाशी रूप की स्मृति को छोड़ कर इन नाशवान् शरीरों तथा नामों को महत्व देने से न केवल अपना जीवन ही निरर्थक होता है, प्रत्युत् अपने साथ महान् धोखा भी होता है इसलिय माहापूरूषो के शरीरो मे मोह न रख कर उनके मार्ग का अनसरण करना चाहिय..
जो चित्रो को सतसंग मान्ते है वे ध्यान दें..
माया का एक और सात्विक रूप है चित्रो मे मोह रखना ..वास्तव में यह शरीर प्रतिक्षण ही मर रहा है, मुर्दा बन रहा है । इसमें जो वास्तविक तत्व (चेतन) है, उसका चित्र तो लिया ही नहीं जा सकता । चित्र लिया जाता है तो उस शरीर का, जो प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है । इसलिए चित्र लेने के बाद शरीर भी वैसा नहीं रहता, जैसा चित्र लेते समय था । इसलिए चित्र की पूजा तो असत् (‘नहीं’)- की ही पूजा हुई । चित्र में चित्रित शरीर निष्प्राण रहता है, अतः हाड़-मांसमय अपवित्र शरीर का चित्र तो मुर्दे का भी मुर्दा हुआ..अगर हम चित्रो को सत्य मान्ते हैं तो हमें माया को झूठ कहने का कोइ अधिकार नही है, नही तो ये वैसा ही होगा की हम विष में से कूछ विष लेके कह रहे हों की ये अमृत है बाकी सब विष है ..इसलिय माया के इन परपंचो से सावधान होकर शुद्ध सत्य को ग्रहण करो..

प्रणाम जी

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