satsang
Monday, February 8, 2016
मंदिर के द्वार को उसका द्वार मत समझ लेना, क्योंकि मंदिर के द्वार में तो वासना ( इच्छाऐं )सहित आप जा सकते हैं। उसका द्वार तो आपके ही हृदय में है। और उस हृदय पर वासना की ही दीवार है। वह दीवार हट जाए, तो द्वार खुल जाए।
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