अरे मन ! तू निरन्तर परमात्मा का ध्यान कर | तू समझता है कि विषयों को मैं भोगता हूँ किन्तु सच यह है कि विषय तुझे भोग रहे हैं | तू कामादिकों को सांसारिक विषय देकर मिटाना चाहता है किन्तु जलती हुई आग में घी पड़ने के समान तेरी वासनाएँ प्रतिक्षण बढ़ती जाती हैं | ऐसा अनुभव करते - करते यद्यपि तुझे अनन्त युग बीत चुके फिर भी तेरी नींद नहीं खुली | तू अब भी मेरी बात मान ले एवं परमात्मा से प्रेम कर | उन्हीं के प्रेम जल से यह तेरी कामनाओं की आग बुझ सकती है ...
प्रणाम जी
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment