Monday, February 29, 2016

जो कोई पीउ के अंग प्यारा ,ताको प्रेम निमख न करे न्यारा |
प्रेम पिया को भावे सो  करे , पिया के दिल की दिल धरे  ||
{परिक्रमा }

जो परमात्मा की अंगा उनकी प्यारी आत्माएं है वो प्रेम का ही अंग हैं क्योंकि परमात्मा स्वयम शुद्ध प्रेम है इसलिए आत्मा उनकी ही अंगी है
जैसे लहरें सागर से अलग नही होती क्योंकि वो पानी की ही स्वरूपा हैं ,किरण कभी भी सूर्ये से अलग नही है क्योंकि वो सूर्ये के ताम से बनी हैं
इसी प्रकार ये आत्माएं प्रेम स्वरुप हैं ये प्रेम से अलग केसे हो सकती है क्या कभी लहरों से पानी को निकला जा सकता है ? इसलिए
ये सदा परमात्मा के अनुकूल ही ही कार्य करती हैं क्योंकि शुद्ध अंशी कभी भी अपने अंश के प्रतिकूल नही हो सकता जिस प्रकार सोने के बड़े ढेले
से अगर थोडा हिस्सा भी लिए जाये तो वो सोने के गी गुण लिए होता है अर्थात जो सोने का स्वाभाव है वोही स्वाभाव उस अंश का भी होता है उसका
स्वाभाव कभी भी बड़े ढेले से प्रतिकूल नही हो सकता यह अदुयेत भाव है इसलिए दोनों के हृदये एक ही हैं वो जो भाव परमात्मा के हृदये के होते है वही भाव आत्मा के हृदये में
अपने आप स्थापित या उत्पन्न हो जाते है यही वहेदत या एकदिली के भाव है ,यही अदुयेत  है ...

प्रणाम जी 

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