Friday, March 4, 2016

वाणी

कोई बुरा न चाहे आप को, पर तिन से दूसरी न होए |
बीज बराबर वृख है, फल भी अपना सोये ||

माया को चाहने वाले , बंदगी से परमात्मा को प्राप्त करने वाले और परमात्मा में एक रस होने वाले इनमे से कोई भी अपना बुरा नही चाहता पर सबकी साधना या आनंद प्राप्ति का एक स्तर है सब अपने स्तर तक ही आनंद प्राप्त कर सकते है, इसलिए अगर किसी को बोहोत समझाने पर भी अगर वो उस स्तर तक नही पोहोच पाता जहाँ आप उसे पोहोचना चाहते है तो इसका अर्थ है की उसका स्तर इतना ही है सामान्यत: जीव अपने संस्कारो  में ही उलझा रहता है जो उसने अनंत जन्मों में देखा है वो शब्द जाल उसके सामने आते ही वो उसी को सत्ये मानने लगता है जैसे जीव को मनुष्ये के गुण ही कहीं मिल जाएँ तो बस वो उसी को परमात्मा मान लेता है उनके के लिए मनुष्ये में मनुष्ये के गुण होतो बस मिल गया परमात्मा साधारणत: उनके सत्संगों में भी यही होता है की "किसी का दिल मत दुखाओ तो बस हो गया भजन" ये बात कोई बुरी नही है क्योंकि ये तो गुण है
और ये भी तभी मिलते है जब सत्ये का उजाला होता है अँधेरे में रह कर प्रकाश प्रकाश सुन्दर शब्दों में बोलने से प्रकाश नही होता उसके लिए दीपक जलाना पड़ेगा, कई मेरे मित्र शिष्टाचार और विनम्रता से ही साधना का आंकलन करते हैं मेने देखा है कई मेरे मित्र तीन गुणों से ही साधक को तोलने में जीवन बिता देते है पर परमात्मा तो गुणातीत है और सर्वोच साधक का व्यव्हार भी गुणातीत होता है इसलिए सबकी साधना
का एक अलग  स्तर है और उनको आनंद प्राप्ति भी अपने स्तर के अनुसार ही होती है, इसलिए किसी को केवल उतना ही बताया जा सकता है जितना की उसका स्तर होता है |
satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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