सुप्रभात जी
www.facebook.com/kevalshudhsatye
शरीर को सत्ता और महत्ता देकर उसके साथ अपना सम्बन्ध मान लेने के कारण उसका शरीर से इतना मोह हो जाता है कि इसका नाम तक उसको प्रिय लगने लगता है । शरीर के सुखों में मान-बड़ाई का सुख सबसे सूक्ष्म होता है । इसकी प्राप्ति के लिए वह झूठ, कपट, बेईमानी आदि दुर्गुण-दुराचार भी करने लग जाता है । शरीर नाम में प्रियता होने से उसमें दूसरों से अपनी प्रशंसा, स्तुति की चाहना रहती है । वह यह चाहता है कि जीवन पर्यन्त मेरे को मान-बड़ाई मिले और मरने के बाद मेरे नाम की कीर्ति हो । वह यह भूल जाता है कि केवल लौकिक व्यवहार के लिए शरीर का रखा हुआ नाम शरीर के नष्ट होने के बाद कोई अस्तित्व नहीं रखता । इस दृष्टि से शरीर की पूजा, मान-आदर एवम् नाम को बनाए रखने का भाव किसी महत्व का नहीं है ।इसलिय नश्वर नाम व शरीर का मोह ना करके इस शरीर को सर्वोतम कार्य में प्रयोग करें.. इसका केवल एक ही सर्वोत्तम उपयोग है की इससे हमें निराकार और साकार से परे एक मात्र सत्य परमात्मा को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिय..
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
www.facebook.com/kevalshudhsatye
शरीर को सत्ता और महत्ता देकर उसके साथ अपना सम्बन्ध मान लेने के कारण उसका शरीर से इतना मोह हो जाता है कि इसका नाम तक उसको प्रिय लगने लगता है । शरीर के सुखों में मान-बड़ाई का सुख सबसे सूक्ष्म होता है । इसकी प्राप्ति के लिए वह झूठ, कपट, बेईमानी आदि दुर्गुण-दुराचार भी करने लग जाता है । शरीर नाम में प्रियता होने से उसमें दूसरों से अपनी प्रशंसा, स्तुति की चाहना रहती है । वह यह चाहता है कि जीवन पर्यन्त मेरे को मान-बड़ाई मिले और मरने के बाद मेरे नाम की कीर्ति हो । वह यह भूल जाता है कि केवल लौकिक व्यवहार के लिए शरीर का रखा हुआ नाम शरीर के नष्ट होने के बाद कोई अस्तित्व नहीं रखता । इस दृष्टि से शरीर की पूजा, मान-आदर एवम् नाम को बनाए रखने का भाव किसी महत्व का नहीं है ।इसलिय नश्वर नाम व शरीर का मोह ना करके इस शरीर को सर्वोतम कार्य में प्रयोग करें.. इसका केवल एक ही सर्वोत्तम उपयोग है की इससे हमें निराकार और साकार से परे एक मात्र सत्य परमात्मा को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिय..
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment