Sunday, June 19, 2016

भगवद्विरोधी..

*भगवद्विरोधी..*

 सुप्रभात जी
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एक परमात्मा के अन्तर्गत समस्त महात्मा हैं, अतः परमात्मा की हृदय से पूजा के अन्तर्गत सभी महात्माओं की पूजा स्वतः हो जाती है । यदि महात्माओं के हाड़-मांसमय शरीरों की तथा उनके चित्रों की पूजा होने लगे तो इससे पुरुषोत्तम परमात्मा की ही पूजा में बाधा पहुँचेगी, जो महात्माओं के सिद्धान्तों से सर्वथा विपरीत है । *महात्मा तो संसार में लोगों को परमात्मा की ओर लगाने के लिए आते हैं, न कि अपनी ओर लगाने के लिए । जो लोगों को अपनी ओर (अपने ध्यान, पूजा आदि में) लगाता है, वह तो भगवद्विरोधी होता है ।* वास्तव में महात्मा कभी शरीर में सीमित होता ही नहीं ...जो महात्मा है वो शरीर कि नश्वरता को भली भांती जानकर सभी प्रकार की जडता को त्याग कर चेतन परमात्मा मे स्थित हो जाता है ..उस महात्मा के सानिध्य में सब चेतन परमात्मा की समीपता को प्राप्त करते है .. और अगर किसी महात्मा के सानिध्य में आप जड-चेतन में भेद ना पाकर उसके नश्वर शरीर में ही भ्रमित हो रहे होतो यह मार्ग भगवद्विरोधी है .....
*सास्त्र पुरान भेख पंथ खोजो , इन पैंडों में पाइए नाहीं ।*
*सतगुर न्यारा रहत सकल थें , कोई एक कुली में काँही ।।*
(श्री मुख वाणी- किरन्तन ५/७)

*गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहू आकार।*
*आपा भेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।*
(कबीर जी)

*इस विषय पर अवश्य चिंतन करें...*
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प्रणाम जी

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