Tuesday, July 26, 2016

परमात्मा एक ही हैं.

वेद के आचार्यों के भाष्यों तथा उनके आधार पर लिए गए पाश्चात्य विद्वानों के वेदों के अनुवादों को पढने से पाठकों ने वेद जगत के कर्ता- धर्ता और नियन्ता एक परमात्मा को मानने के स्थान पर अग्नि, इन्द्र, वरुण, मित्र आदि अनेक देवी देवताओं को मानने लगे.व देवी देवताओं की पूजा का विधान बन गया..और अग्यान कि हद तब हो जाती है जब केवल एक परमात्मा को मान्ने में भय लगता है कि देवी देवता नराज होकर अनिष्ट न कर दें..  
स्वामी दयानंद ने स्पष्ट रूप से घोषणा की वेद एकेश्वरवादी हैं न की बहुदेवतावादी.
वेदों में एकेश्वरवाद के प्रमाण

१. ऋग्वेद १.१६४.४६ – उसी एक परमात्मा को इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि, दिव्या, सुपर्ण, गरुत्मान, यम और मातरिश्वा आदि अनेक नामों से कहते हैं.
२. यजुर्वेद ३२.१- अग्नि, आदित्य, वायु, चंद्रमा, शुक्र, ब्रह्मा, आप: और प्रजापति- यह सब नाम उसी एक परमात्मा के हैं.

३. ऋग्वेद १०.८२.३ और अथर्ववेद २.१.३- वह परमात्मा एक हैं और सब देवों के नामों को धारण करने वाला हैं, अर्थात सब देवों के नाम उसी के हैं.

४. ऋग्वेद २.१ सूक्त में अग्नि शब्द को ज्ञानस्वरूप परमात्मा का वाचक के रूप में संबोधन करते हुए कहाँ गया हैं की हे अग्नि, तुम इन्द्र हो, तुम विष्णु हो, तुम ब्रह्मणस्पति, वरुण, मित्र, अर्यमा, त्वष्टा हो. तुम रूद्र, पूषा, सविता, भग, ऋभु , अदिति, सरस्वती,आदित्य और ब्रह्मा हो.

५. अथर्ववेद १३.४ (२), १५-२०- जो व्यक्ति इस परमात्मा देव को एक रूप में विद्यमान जनता हैं, जो की वह न दूसरा हैं, न तीसरा हैं और न चौथा हैं ऐसा जानता हैं, जोकि वह पांचवा हैं, न छठा हैं और न सांतवा हैं ऐसा जानता हैं, जोकि वह न आठवां हैं, न नवां हैं और न दसवां हैं ऐसा जानता हैं, वह सब कुछ जानता हैं. वह चेतन और अचेतन संपूर्ण रहस्य को जन लेता हैं. उसी परमात्मा देव में यह सारा जगत समाया हुआ हैं. वह देव अत्यंत सहन शक्ति वाला हैं. वह एक ही हैं, अकेला ही वर्तमान हैं, वह एक ही हैं.

इस प्रकार वेदों में अनेक प्रमाण केवल एक परमात्मा के हैं  बहुदेवतावाद का स्पष्ट खंडन है..
जो अब भी बहुदेवतावाद को मान्ता है वो वेद विरोधि है अर्थात 'धर्मविरोधी'
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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