Wednesday, August 24, 2016

शून्य मरे अजपा मरे अनहद हूं मरजाय,
राम स्नेही न मरे, कहे कबीर समझाय ||
( कबीर )

शून्य या निराकार नाशवान है, अजपा जाप भी प्राणहीन है अर्थात ये भी शरीर के साथ नष्ट हो जाता है, और अनहद नाद भी असत्य व लय होने वाला है.. परन्तु जो परमात्मा से अदूैत भाव में रहते हैं वे अदूैत परमात्मा के साथ सदा स्नेह अर्थात अखंड आनंद में विश्रामित रहते है.. कबीर जी यह सबको समझा रहे हैं...पर कबीर को मान्ने वाले अभी भी अदूैत भाव से दूर अजपा में ही जीवन गवां रहे है.. कोई और कबीर को परमात्मा तुल्य ना माने तो उन्हे बुरा लगता है पर सवंय कबीर के भाव ना जान कर कबीर विरोधी हो रहे है...
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प्रणाम जी

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