Sunday, September 25, 2016

पी को काहां ढ़ूंड़ू मैं सखी री, जहां खोजे सब बीदेस |
सोई तो पियु मिले नही, जागी तो वो अपने देस ||

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Saturday, September 17, 2016

*मन*

म और न = मन
म=मैं - न=नही = जो आप सवंय नही हो वो मानी हूई मान्यता कि स्थिती है *मन* अर्थात जो आप नहि हो .
सत्य और स्थूल के बीच की *नही* की स्थिती मन है.. वास्तव में यह है ही नही यह केवल *मान्यता* है .. तो मन याने *मैं नही* अर्थात मन है ही नही केवल मान्यता है... तो जो है नही उसका तुमने पहाड वना रख्खा है .. और मान्यता में भ्रमित हो रहे हो..
*इलाज-* -- केवल एक, इस मान्यता अर्थात *नही* की जड़ (मूल, जहां से मान्यता उत्पन्न हुइ है)पर प्रहार....

इसलिय कहा है " *पर मनवा दिय विन हाथ न आवे सतकी बडी ठकुराई*
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प्रणाम जी

Tuesday, September 13, 2016

*दो बातें*

1- परमात्मा को पाने का प्रयास मत करना कयोंकी वो प्राप्त है .. हमारे अंदर है, बस मान्यता का परदा हटाने का प्रयास करो , जो बाधा है ...

2- "ग्यान" की स्थिती में परमात्मा से निरंतर साक्षातकार है.. ("ग्यान" जानकारी का बोझ नही है)
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प्रणाम जी

Thursday, September 8, 2016

दो बातें..
1- केवल तुम सवंय ही सत्य हो बाकी सब अंहकार है, असत्य है ,नही है..

2- सत्य कभी शब्दो में नही आता जो शब्दो में बताया जाये वो सब असत्य है...
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प्रणाम जी