*मन*
म और न = मन
म=मैं - न=नही = जो आप सवंय नही हो वो मानी हूई मान्यता कि स्थिती है *मन* अर्थात जो आप नहि हो .
सत्य और स्थूल के बीच की *नही* की स्थिती मन है.. वास्तव में यह है ही नही यह केवल *मान्यता* है .. तो मन याने *मैं नही* अर्थात मन है ही नही केवल मान्यता है... तो जो है नही उसका तुमने पहाड वना रख्खा है .. और मान्यता में भ्रमित हो रहे हो..
*इलाज-* -- केवल एक, इस मान्यता अर्थात *नही* की जड़ (मूल, जहां से मान्यता उत्पन्न हुइ है)पर प्रहार....
इसलिय कहा है " *पर मनवा दिय विन हाथ न आवे सतकी बडी ठकुराई*
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प्रणाम जी