सुप्रभात जी
इस जगत के दूैत व मान्यता के जाल ने बंधन की गांठ को इस प्रकार जोर से बांधा हैं, कि मानव इसे सत्य एवं सुखद समझ कर आत्मा एवं परमात्मा के अदैत सम्बन्ध को असत्य मानने लगा हैं और इसके विपरीत दूैत के झूठी देह और जगत को सत्य माने बैठा हैं।
इस संसार के समस्त लोग शारीरिक सम्बंध को ही सच्चा मानते चले जा रहे हैं। आत्मा व परमात्मा की पहचान कोई भी नहीं करता। क्षण भंगुर शरीर के झूठे सम्बंधो को स्वीकार कर उन्हें पालन करने में सारा जीवन व्यतीत कर देते हैं क्योंकि देह को ही उन्हों ने सर्वस्व मान लिया हैं।
इस शरीर पर चंदन का लेप लगाकर इसे बार बार धोते हैं और सुगन्धित इत्र आदि लगाते हैं फिर अच्छे अच्छे भोजन पका कर बडे प्यार से इसे पुष्ट करते हैं और इसकी सुरक्षा हेतु अनेक प्रयास करते हैं। वे इस तथ्य को भूल जाते हैं कि उनकी यह द्रष्टि (लक्ष्य) तो नश्वर मिट्टी की काया - खाक से ही बांधी हैं।
इस शरीर का सर्वोतम और एक मात्र उपयोग आत्मा में परमात्मा को पहचान कर उस भाव को अदैुत प्रेम से पोषित करना है...
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
प्रणाम जी
इस जगत के दूैत व मान्यता के जाल ने बंधन की गांठ को इस प्रकार जोर से बांधा हैं, कि मानव इसे सत्य एवं सुखद समझ कर आत्मा एवं परमात्मा के अदैत सम्बन्ध को असत्य मानने लगा हैं और इसके विपरीत दूैत के झूठी देह और जगत को सत्य माने बैठा हैं।
इस संसार के समस्त लोग शारीरिक सम्बंध को ही सच्चा मानते चले जा रहे हैं। आत्मा व परमात्मा की पहचान कोई भी नहीं करता। क्षण भंगुर शरीर के झूठे सम्बंधो को स्वीकार कर उन्हें पालन करने में सारा जीवन व्यतीत कर देते हैं क्योंकि देह को ही उन्हों ने सर्वस्व मान लिया हैं।
इस शरीर पर चंदन का लेप लगाकर इसे बार बार धोते हैं और सुगन्धित इत्र आदि लगाते हैं फिर अच्छे अच्छे भोजन पका कर बडे प्यार से इसे पुष्ट करते हैं और इसकी सुरक्षा हेतु अनेक प्रयास करते हैं। वे इस तथ्य को भूल जाते हैं कि उनकी यह द्रष्टि (लक्ष्य) तो नश्वर मिट्टी की काया - खाक से ही बांधी हैं।
इस शरीर का सर्वोतम और एक मात्र उपयोग आत्मा में परमात्मा को पहचान कर उस भाव को अदैुत प्रेम से पोषित करना है...
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