*मन*
दो मन हैं..
एक है- म और न = मन ,म=मैं - न=नही = जो आप सवंय नही हो वो मानी हूई मान्यता कि स्थिती है *मन* अर्थात जो आप नहि हो .
और दूसरा मन है - म=मैं , न=नही अर्थात जो आप नही हो उसमें जो सत्य "है" की स्थिती है ,वो आप सवंय है...
पहला मन---सत्य और स्थूल के बीच की *नही* की स्थिती मन है.. वास्तव में यह है ही नही यह केवल *मान्यता* है .. तो मन याने *मैं नही* अर्थात मन है ही नही केवल मान्यता है... तो जो है नही उसका तुमने पहाड वना रख्खा है .. और मान्यता में भ्रमित हो रहे हो..
दूसरा मन----एक मन और है , ये है "मैं नही" की अवस्था शुक्ष्म अंह के पार की अवस्था..*इसका विस्तार से विवरण श्रि प्राणनाथ वाणी में दिया गया है..*
*इलाज-* -- केवल एक, इस मन की मान्यता अर्थात *नही* की जड़ पर "मैं नही" की अवस्था से प्रहार..
इसलिय कहा है " *मन ही बान्धे मन ही खोले*
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
&
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
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एक है- म और न = मन ,म=मैं - न=नही = जो आप सवंय नही हो वो मानी हूई मान्यता कि स्थिती है *मन* अर्थात जो आप नहि हो .
और दूसरा मन है - म=मैं , न=नही अर्थात जो आप नही हो उसमें जो सत्य "है" की स्थिती है ,वो आप सवंय है...
पहला मन---सत्य और स्थूल के बीच की *नही* की स्थिती मन है.. वास्तव में यह है ही नही यह केवल *मान्यता* है .. तो मन याने *मैं नही* अर्थात मन है ही नही केवल मान्यता है... तो जो है नही उसका तुमने पहाड वना रख्खा है .. और मान्यता में भ्रमित हो रहे हो..
दूसरा मन----एक मन और है , ये है "मैं नही" की अवस्था शुक्ष्म अंह के पार की अवस्था..*इसका विस्तार से विवरण श्रि प्राणनाथ वाणी में दिया गया है..*
*इलाज-* -- केवल एक, इस मन की मान्यता अर्थात *नही* की जड़ पर "मैं नही" की अवस्था से प्रहार..
इसलिय कहा है " *मन ही बान्धे मन ही खोले*
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