Thursday, November 24, 2016

*मन को समझना बहोत विकट व आवश्यक है ..*

कर्ता और क्रिया के मेल से उत्पन्न अवस्था मन है ..उदाहरण-जैसे ढोल बजाने वाला कर्ता है और बजने वाला ढोल से जो ध्वनी उत्पन्न होती है वो मन है.. यह मन क्रिया के अनुसार अपना रूप बदलता रहता है इसलिय कईबार इसकी उपस्थिती न दिखने पर भी यह भ्रमित करता रहता है.. ऐसा भ्रम अध्यात्म में सबसे ज्यादा होता है..
जब आपका अहं "अस्तितव" भक्ति से जुडता है तो वहां भी कर्ती याने अहं "अस्तितव" और क्रिया याने भक्ती के संयोग से जो मन उतपन्न होता है वह मन अद्रिश्य सा रहता है और हम समझ लेते हैं कि मन लय हो गया और हम मन से परे हो गये.. पर वहां भी मन उपस्थित रहता है , वह भी घातक है, यह अवस्था भी परमात्मा से विमुखता ही है..
इसलिय सही मार्ग ढूंडो..
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment