Saturday, April 15, 2017

कयों विकार विकार करते हो, तुम कभी विकारित नही हो सकते, जिसको तुम विकार, काम,क्रोध, लोभ, मोह,अहंकार आदि मान्ते हो वो तो जीव और शरीर का विषय सम्बंध है, तुम तो शुद्ध आत्मा हो तुममें कभी विकार नही आ सकते, फिर तुम कयों व्यर्थ में सवंय को आरोपित कर रहे हो.. मत लो ये आरोप अपने उपर की तुम विकारित हो..और तुम लाख प्रयत्न करलो इस शरीर से विकार अलग नहीं होगें, कयोंकी ये इस जीव का विषय है, ये जीव और शरीर बना ही विकार से है तो इनसे अलग कैसे होगा..जैसे मिट्टी के ढेले से मिट्टी को अलग नही कर सकते कयोंकी वो बना ही मिट्टी से है, इसी प्रकार तुम भी आत्मा हो आनंद हो, तुम्हारा विषय आनंद है तुम आनंद से बने हो, तुम अपना विषय भूलकर जीव व शरीर के विषय को अपने पर आरोपित मत करो, बल्कि अपना विषय शरीर और जीव को दो ताकी यो भी तुम्हारे विषय को जान सकें..ये भी आनंदित हो सकें..
प्रणाम जी
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