Friday, July 14, 2017

पढ़ पढ़ इल्म तू फाजिल होईया कदे आपने आपनू पढ़िया ही नही...
बूल्ले शाह..

पढ़  पढ़  के  इलम  की बाते  तू ज्ञानी तो हो  गया  पर  कभी अपने  आप  को  जानने का प्रयास  नही कीया ,
तू  मंदिर मस्जित भागता फिरता हैं  कभी अपने हृदये  में  झांक के नही देखता ,
तू सोचता  हैं की शैतान बहार  हैं और रोज इसी  उलझन  में रहता  हैं पर  कभी अपने अंदर के दूैत रूपी अंधकार को दूर नही करता  जहाँ से शैतान  उत्पन्न होता हैं ,
तू समझता हैं की खुदा आसमान में रहता हैं पर वो तो तेरे  आत्महृदये में हैं याने तेरे  घर में हैं जीसे तूने कभी  खोजने का प्रयास नही कीया..

प्रणाम जी

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