Wednesday, August 30, 2017

सतगुरुतत्व क्या है ?


ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादि लक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वदा साक्षिरूपम्,
भावातीतं त्रिगुण रहितं सतगुरु तन्नमामि ॥
(स्कन्द्पुराणे गुरुगीतायम्)


अर्थ:= *सच्चिदानंद ब्रह्म आनन्द स्वरूप है, उसका आनंद ही प्रत्येक प्राणी में अक्रषण रूप में विद्यमान रह कर उसे आनंद की और आकर्षित करता है, यही आनंद जब आंतरिक रूप में जान लिया जाता है तो इसी को सत्गुरु य गुरुतत्व कहा जाता है।वही मूल आनंद आकर्षण सत्गुरु हैं। क्योंकि गु का अर्थ है अंधेरा या माया और रू का अर्थ है आनंद या प्रकाश,तो जो माया रूपी अंधेरे में आंतरिक आनंद रूपी प्रकाश के आकर्षण के माध्यम से हमें सत्य आनंद का बोध होता है यही माध्येम गुरूतत्वा या सतगुरु है* इसी आनंद के माध्यम तत्व को राधा या श्यामा कहा गया है।इसी कारण किसी मूलआनंदतत्वदर्शी ने कहा था राधे राधे श्याम मिला दे, राधा अर्थात उपरोक्त माध्यम व श्याम अर्थात मूल आनंद। पर अज्ञानवश लोगो ने इसे रटना शुरू कर दिया कि राधे राधे श्याम मिला दे।इस राधा तत्व से अनभिज्ञ होने के कारण लोगों ने इसे स्त्री या पुरुष बना कर देखना शुरू कर दिया।इसी के कारण राधा नाम के जाप का भ्रम पैदा हो गया।यही मूलतत्व सर्वोत्तम ज्ञान एवं परम सुख का दाता है। यह द्वंद्व अर्थात माया, निरंजन निराकार एवं साकार ब्रह्मांड से परे हैं । आकाश जैसा इसका स्वभाव है, क्योंकि ये परम शांत व अनंत्ता लिए हुए है।तत्वमसि में से असि पद ब्रह्म को कह गया है । तत पद ईश्वर से परे ब्रहं का लक्ष्य देते हैं। वह अचल रूप, सदा साक्षी स्वरूप हैं । स्वभाव अर्थात अध्यात्म अर्थात मूल अहम या अक्षरब्रह्म से भी परे हैं । तीनों गुण सत-रज-तम के स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश से परे हैं । ऐसे सतगुरु को सप्रेम नमस्कार है ।


ऋग्वेद 10.49.1


केवल एक परमात्मा ही सत्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने वालों को सत्य ज्ञान का देने वाला है । वही ज्ञान की वृद्धि करने वाला और  धार्मिक मनुष्यों को श्रेष्ठ कार्यों में प्रवृत्त करने वाला है । वही एकमात्र इस  सारे संसार का रचयिता और नियंता है । इसलिए कभी भी उस एक परमात्मा को छोड़कर और किसी को भी धारण नहीं करना चाहिए ..

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