*जानें बिनु न होइ परतीती । बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती ।*
*प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई । जिमि खगपति जल कै चिकनाई |*
स्त्ये को जाने बिना वह अंतकरण में प्रतीत (घटित,महसूस, अनुभव) नहीं होती एवं बिना प्रतीत के प्रीत (प्रेम, एकरस, अदुयत) नहीं होती । बिना प्रेम के दृढ़ता से भगति (जुङाव या दो का भाव न होना) नहीं होती । इसलिए सत्य को बिना जाने अदुयेत, एकरसता, या प्रेम सम्भव ही नहीं है ।शुद्ध सत्य को जाने बिना लोग जो भगति करते है उसमे में ओर तू का भाव रखते है, मिलने की इच्छा करते है, विरह में रोते हैं, परमात्मा को अलग मानकर अपनी भक्ति का आधार बनाते है। ऐसे भक्त कभी भी सत्य के करीब नहीं जा सकते वो भक्ति करके भी परमात्मा से ऐसे अलग रहते है *जैसे जल और चिकनाई परस्पर मिले हुये भी प्रथक ही रहते हैं ।*
इसलिए सत्य को जानना परम आवश्यक है।
*जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग|*
*तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग||*
ओर गहनता में कबीर जी कहते है..
*एक कहूँ तो है नहीं, दो कहूँ तो गारी|*
*है जैसा तैसा रहे, कहे कबीर बिचारी|*
*ज्ञान, प्रेम, सत्य, परमात्मा, आनंद, आत्मा ये सब एक ही हैं*
Satsangwithparveen.blogspot.com
*प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई । जिमि खगपति जल कै चिकनाई |*
स्त्ये को जाने बिना वह अंतकरण में प्रतीत (घटित,महसूस, अनुभव) नहीं होती एवं बिना प्रतीत के प्रीत (प्रेम, एकरस, अदुयत) नहीं होती । बिना प्रेम के दृढ़ता से भगति (जुङाव या दो का भाव न होना) नहीं होती । इसलिए सत्य को बिना जाने अदुयेत, एकरसता, या प्रेम सम्भव ही नहीं है ।शुद्ध सत्य को जाने बिना लोग जो भगति करते है उसमे में ओर तू का भाव रखते है, मिलने की इच्छा करते है, विरह में रोते हैं, परमात्मा को अलग मानकर अपनी भक्ति का आधार बनाते है। ऐसे भक्त कभी भी सत्य के करीब नहीं जा सकते वो भक्ति करके भी परमात्मा से ऐसे अलग रहते है *जैसे जल और चिकनाई परस्पर मिले हुये भी प्रथक ही रहते हैं ।*
इसलिए सत्य को जानना परम आवश्यक है।
*जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग|*
*तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग||*
ओर गहनता में कबीर जी कहते है..
*एक कहूँ तो है नहीं, दो कहूँ तो गारी|*
*है जैसा तैसा रहे, कहे कबीर बिचारी|*
*ज्ञान, प्रेम, सत्य, परमात्मा, आनंद, आत्मा ये सब एक ही हैं*
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