Friday, May 4, 2018

बुल्ले शाह

*बुल्ले शाह*

*इश्क दी नवियों नवीं बहार,*
*फूक मुसल्ल भन सिट लोटा,*
*न फड़ तस्बी कासा सोटा,*
*आलिम कहन्दा दे दो होका,*
*तर्क हलालों खह मुर्दार।*

परमात्मा याने इश्क तो हमेशा नया नया आनंद स्वयं ही होता है, और उस इश्क को पाना है तो..आसन फूको, लोटा फेंक के तोड़ दो, जपमाला, प्याला, और दंड न पकड़ो, मैं ऊंची आवाज में कहता हूं की सब तरह के असत को छौड़ दो कयोंकी चाहे किसी रूप में भी हो असत तो असत है..

उमर गवाई विच मसीती,
अन्दर भरिया नाल पलीती,
कदे नमाज़ वाहदत ना कीती,
हूण कियों करना ऐं धाड़ो धाड़।

तूने मस्जिद में उम्र गंवा दी, पर तेरा अंतःकरण अभी भी वैसा ही मैला ही है.. , परमात्मा को कभी अपना नहीं समझा सदा उसको बाहर ही मानकर अपने से दूर रखा, फिर तू अब क्यों रोता है।

जां मैं सबक इश्क दा पढिय़ा,
मस्जिद कोलों जिवड़ा डरिया,
भज भज ठाकर द्वारे वडिय़ा,
घर विच पाया माहरम यार।

जब मैने परमात्मा प्रेम का पाठ पढ़ा, जड से बने मंदिरो व मस्जिदो से मेरे जीव को डर लगने लगा,तब मैं वहा से  भागा तो परमात्मा को अपने ही ह्रदय में पाया|

जा मैं रमज़ इश्क दा पाई,
मैं नां तूती मार गवाई,
अन्दर बाहर हुई फाई,
जित वल वेखां यारो यार।

जब परमात्मा के प्रेम का रहस्य जाना तब उसनें मैं-मैं, तू-तू को मार दिया, भीतर-बाहर की सफाई हो गई, सब तरफ उसे ही पाया।

वेद कुराना पढ़-पढ़ थक्के,
सिज्दे कर दियां घस गए मथ्थे,
न रब्ब तीरथ न रब्ब मक्के,
जिन पाया तिन नूर अँवार।

वेद-पुराण व कुरान आदी अनेक ग्रन्थ पढ़-पढ़ कर थक गए, भिखारी बनके उनके दर पर मत्था रगड रगड करके सिर भी घिस गए, परमात्मा न तीर्थ में मिला और न ही मक्के में, जिसनें पाया उसे पता है की वो आनंद का अपार नूर है |

इश्क भुलाया सिज्दे तेरा,
हूण कियों आईवें ऐवैं पावें झेड़ा,
बुल्ला हो रहो चुप चुपेरा,
चुक्की सगली कूक पुकार।

तेरे प्रेम ने प्रार्थना भुला दी, अब झगड़ा करने को कया है? बुल्ला चुप होकर कह रहा है, सारी हाहाकार शान्त हो गई है ||
Satsangwithparveen.blogspot.com

प्रणाम जी

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