'मृत्यु क्या है?'
'जीवन को हम नहीं जानते हैं, इसलिए मृत्यु है। स्व-को नहीं जानना मृत्यु है, अन्यथा मृत्यु नहीं है, केवल परिवर्तन है। 'स्व' को न जानने से एक कल्पित 'स्व' हमने निर्मित किया है। यही है हमारा 'मैं' -अहंकार।'
यह है नहीं, केवल आभास है। यह झूठी इकाई ही मृत्यु में टूटती है। इसके टूटने से दुख होता है, क्योंकि इसी से हमने अपना "होना" स्थापित किया था। जीवन में ही इस भ्रांति को पहचान लेना मृत्यु से बच जाना है। जीवन को जान लो और मृत्यु समाप्त हो जाती है। जो है, वह अमृत है। उसे जानते ही नित्य, शाश्वत जीवन उपलब्ध हो जाता है।
'स्व-ज्ञान जीवन है। स्व-विस्मरण मृत्यु है।'
Sateangwithparveen.blogspot.com
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