सिर्फ अपने शरीर को कष्ट देने से और किसी जंगल में अकेले में कठिन तपस्या करने से हमें आत्मआनंद की प्राप्ति नहीं होगी।
हमें आत्मआनंद की प्राप्ति सिर्फ आत्मज्ञान के द्वारा प्राप्त हो सकती है। लम्बी यात्रा पर जाने से या कठिन व्रत रखने से हमें परम ज्ञान अथवा आत्मआनंद प्राप्त नहीं होगा।
चाहे हम योग की राह पर चलें या हम अपने सांसारिक उत्तरदायित्वों को पूर्ण करना ही बेहतर समझें, यदि हमने ये बात जान ली कि आनंद कहीं बाहर से नहीं आना, आनंद हमारे अंदर ही है, तो हमें सदैव आत्मआनंद प्राप्त होगा कयोंकी एकमात्र आत्मा व परमात्मा ही आनंद है अर्थात आप स्वयं,आनंद और बृह्म ये सब एक है...
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प्रणाम जी
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