सुप्रभात जी
जब तक संसार को हम अपना समझते रहेंगे और संसार से किसी भी प्रकार की आशा रखेंगे, तब तक परम-लक्ष्य की प्राप्ति असंभव है। जब तक अपना सुख, आदर, सम्मान चाहते रहेंगे तब तक परमात्मा को अपना कभी नहीं समझ सकेंगे। परमात्मा की कितनी भी बातें कर लें, सुन भी लें, पढ़ भी लें लेकिन जब तक सुख की चाहत बनी रहेगी तब तक परमात्मा में मन नहीं लग पायेगा।कयोंकी वो शुध्द आनंद स्वरूप गुणातीत है ओर हम गुणो में आनंद ले रहे है..
(गीताः ७/१३)
प्रकृति के इन तीनों गुणों से उत्पन्न भावों द्वारा संसार के सभी जीव मोहग्रस्त रहते हैं, इस कारण प्रकृति के गुणों से अतीत मुझ परम-अविनाशी को नहीं जान पाते हैं...
हम परमात्मा से परमात्मा को नहीं चाहते है, हम परमात्मा से संसारिक सुख, सांसारिक मान, सांसारिक सम्पदा चाहते हैं।
जब तक हमारे अन्दर परमात्मा से परमात्मा को ही पाने की चाहत नहीं होगी तब तक परमात्मा को कैसे प्राप्त हो सकेंगे? संसारिक सभी रिश्ते तो स्वार्थ के रिश्ते हैं, हमारी जितनी सामर्थ्य हो सके उतना ही सांसारिक रिश्तों को निभाने का प्रयत्न करना चाहिये। हमें अपनी शक्ति-सामर्थ्य के अनुसार ही संसार की सेवा करनी चाहिये, स्वयं के सुख-सुविधा की अपेक्षा संसार से नही करनी चाहिये।
परमात्मा में हमारा मन तभी लग पायेगा जब तक हम यह नहीं समझ लेंगे कि संसार में न तो हमारा कभी कोई था, न ही कभी कोई हमारा होगा और न ही कोई हमारा है। केवल परमात्मा ही हमारे थे, परमात्मा ही हमारे हैं और परमात्मा ही हमारे रहेंगे। इस संसार में कोई हमारा हो भी नहीं सकता है जो हमें चिर स्थाई सुख-सुविधा और प्रसन्नता दे सके। संसार में तो सभी सुख-सुविधा के भूखे हैं, मान के भूखे हैं, संपत्ति के भूखे हैं तो वह हमारे को सुख-सुविधा, मान-सम्मान, धन-संपदा कैसे दे सकते हैं
इसलिय बार बार कह रहा हूं की एकमात्र परमातमा में ध्यान लगा कर उसे ही प्राप्त करना हमारा लक्ष्य होना चाहिय वो भी इसी जन्म में ओर अती शिघ्र..
Satsangwithparveen.blogspot.com
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
प्रणाम जी
जब तक संसार को हम अपना समझते रहेंगे और संसार से किसी भी प्रकार की आशा रखेंगे, तब तक परम-लक्ष्य की प्राप्ति असंभव है। जब तक अपना सुख, आदर, सम्मान चाहते रहेंगे तब तक परमात्मा को अपना कभी नहीं समझ सकेंगे। परमात्मा की कितनी भी बातें कर लें, सुन भी लें, पढ़ भी लें लेकिन जब तक सुख की चाहत बनी रहेगी तब तक परमात्मा में मन नहीं लग पायेगा।कयोंकी वो शुध्द आनंद स्वरूप गुणातीत है ओर हम गुणो में आनंद ले रहे है..
(गीताः ७/१३)
प्रकृति के इन तीनों गुणों से उत्पन्न भावों द्वारा संसार के सभी जीव मोहग्रस्त रहते हैं, इस कारण प्रकृति के गुणों से अतीत मुझ परम-अविनाशी को नहीं जान पाते हैं...
हम परमात्मा से परमात्मा को नहीं चाहते है, हम परमात्मा से संसारिक सुख, सांसारिक मान, सांसारिक सम्पदा चाहते हैं।
जब तक हमारे अन्दर परमात्मा से परमात्मा को ही पाने की चाहत नहीं होगी तब तक परमात्मा को कैसे प्राप्त हो सकेंगे? संसारिक सभी रिश्ते तो स्वार्थ के रिश्ते हैं, हमारी जितनी सामर्थ्य हो सके उतना ही सांसारिक रिश्तों को निभाने का प्रयत्न करना चाहिये। हमें अपनी शक्ति-सामर्थ्य के अनुसार ही संसार की सेवा करनी चाहिये, स्वयं के सुख-सुविधा की अपेक्षा संसार से नही करनी चाहिये।
परमात्मा में हमारा मन तभी लग पायेगा जब तक हम यह नहीं समझ लेंगे कि संसार में न तो हमारा कभी कोई था, न ही कभी कोई हमारा होगा और न ही कोई हमारा है। केवल परमात्मा ही हमारे थे, परमात्मा ही हमारे हैं और परमात्मा ही हमारे रहेंगे। इस संसार में कोई हमारा हो भी नहीं सकता है जो हमें चिर स्थाई सुख-सुविधा और प्रसन्नता दे सके। संसार में तो सभी सुख-सुविधा के भूखे हैं, मान के भूखे हैं, संपत्ति के भूखे हैं तो वह हमारे को सुख-सुविधा, मान-सम्मान, धन-संपदा कैसे दे सकते हैं
इसलिय बार बार कह रहा हूं की एकमात्र परमातमा में ध्यान लगा कर उसे ही प्राप्त करना हमारा लक्ष्य होना चाहिय वो भी इसी जन्म में ओर अती शिघ्र..
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प्रणाम जी
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