आज के युग मे सतगुरू पाना बहोत मुशकिल है सब भेस बना कर अपने को गुरू कहलाने पे तुले हैं परमात्मा की जगह अपनी पूजा करवाते है..वेश से ही बैरागी बने है इन्होने वैराग का अर्थ ही बदल दिया है..इन्होने अपनी अग्यान्ता में दुनिया को डुबो दिया है..बाहर से अपने को शितल दिखाने का प्रयास करते है पर अन्दर विषय विकारो की अग्नि प्रबल दहक रही होती है..
से लोग परमात्मा के गुण गाके उसके नाम पे दान मांगते है उनको जरा अन्तर मन मे विचार करना चाहिय की कया वो भगवान को बेचने की दुकान नही चला रहे..अपने पेट के लिय कया उन्हे यही रोजगार मिला ? ऐसे लोगो के मृतयु के बाद यमराज उनके मुह पर मारता हुआ लेके जायगा..ऐसे लोग सतगुरू होकरबैठ जाते है अनेको शिष्य बना लेते है खुद तो अंधेरे कुय मे गिरते है औरो को भी डालते हैं..
जो अंदर से निर्मल होगा वो बाहर से दिखावा नही करेगा वो परमात्मा को अपने अंदर ही छुपा के रखता है केवल उसी को पारब्रह्म की पहचान है जिसने अपने हरदय में परमात्मा को लिया उसे बाहर दिखावे से परहेज होता है केवल ऐसे लोगो की ही संगत करनी चाहिय ..केवल उनही के ग्यान को ध्यान पूर्वक सुन्ना चाहिय..
सतगुरु क्योम पाइये कुली में, भेखे विगाड्यो वैराग।
डिंभकाइये दुनियां ले डुबोई, बाहर शीतल माहें आग ॥
गोविद के गुण गाय के, ता पर मांगत दान ।
धिक धिक पडो सो मानवी, जो बेचत है भगवान ॥
उदर कारण बेचें हरि को, मूंढो ये ही पायो रोजगार ।
मारते मुख ऊपर, बाको ले जासी यम द्वार ॥
बैठत सतगुरू होय के, आस करे शिष्य केरी ।
सो डूबे आप शिष्यण सहित, जाय पडें कूप अंधेरी ॥
जो माहें निरमल बाहर दे न दिखाई, वाको पारब्रह्म सों पहिचान ।
“महामत” कहें संगत कर वाकी, कर वाही सों गोष्ट ज्ञान ॥
प्रणाम जी
से लोग परमात्मा के गुण गाके उसके नाम पे दान मांगते है उनको जरा अन्तर मन मे विचार करना चाहिय की कया वो भगवान को बेचने की दुकान नही चला रहे..अपने पेट के लिय कया उन्हे यही रोजगार मिला ? ऐसे लोगो के मृतयु के बाद यमराज उनके मुह पर मारता हुआ लेके जायगा..ऐसे लोग सतगुरू होकरबैठ जाते है अनेको शिष्य बना लेते है खुद तो अंधेरे कुय मे गिरते है औरो को भी डालते हैं..
जो अंदर से निर्मल होगा वो बाहर से दिखावा नही करेगा वो परमात्मा को अपने अंदर ही छुपा के रखता है केवल उसी को पारब्रह्म की पहचान है जिसने अपने हरदय में परमात्मा को लिया उसे बाहर दिखावे से परहेज होता है केवल ऐसे लोगो की ही संगत करनी चाहिय ..केवल उनही के ग्यान को ध्यान पूर्वक सुन्ना चाहिय..
सतगुरु क्योम पाइये कुली में, भेखे विगाड्यो वैराग।
डिंभकाइये दुनियां ले डुबोई, बाहर शीतल माहें आग ॥
गोविद के गुण गाय के, ता पर मांगत दान ।
धिक धिक पडो सो मानवी, जो बेचत है भगवान ॥
उदर कारण बेचें हरि को, मूंढो ये ही पायो रोजगार ।
मारते मुख ऊपर, बाको ले जासी यम द्वार ॥
बैठत सतगुरू होय के, आस करे शिष्य केरी ।
सो डूबे आप शिष्यण सहित, जाय पडें कूप अंधेरी ॥
जो माहें निरमल बाहर दे न दिखाई, वाको पारब्रह्म सों पहिचान ।
“महामत” कहें संगत कर वाकी, कर वाही सों गोष्ट ज्ञान ॥
प्रणाम जी
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