Monday, December 14, 2015

माया की महक नही रहेगी


ऊंचा नीचा गेहेरा गिरदवाए, कठन समया इत पोहोंचा आए ।
हाथ ना सूझे सिर ना पाए, इन अंधेरी से निकस्यो न जाए ।।

यह मोह सागर ऊँचा, नीचा, गहरा तथा चारों ओर विशालरूपमें फैला हुआ है (इन चौदहलोकोंमें सर्वत्र मोह व्याप्त है). बड़ा कठिन समय सामने आ गया है. अज्ञाानका अन्धकार इतना व्याप्त है कि स्वयंको अपने हाथ पैर तथा सिर भी नहीं सूझते हैं (अज्ञाानके कारण आत्माएँ स्वयंको तथा अपने अंगी परमात्माको भी पहचान नहीं सकतीं). ऐसे समयमें इस अज्ञाानरूपी अन्धकारसे बाहर निकना बहोत कठिन है...
मूल भाव-- जिस प्रकार एक खाली बर्तन में अगर कोइ अचार आदी महक वाली कोई वस्तु रखें तो और कुछ समय के बाद उसे खाली करके चाहे कितना भी धो लें पर उसकी महक नही जाती पर अगर उस बर्तन में कोई मंहगा इत्र रख दें तो कुछ समय के बाद उसमें से इत्र की खुशबु आने लगती है..इसी प्रकार ये जीव के ह्रदय मे विषय विकार अन्नत जन्मों से रखे हुये है उन्हे निकालने का कितना भी प्रयास कर लो पर उनकी महक नही जाती ..पर जब उसकी जगह परमात्मा रूपी इत्र रख दिया जायेगा अर्थात परमात्मा को धारण कर लेंगे तो माया की महक नही रहेगी..

प्रणाम जी

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