सुप्रभात जी
एक राजा को वरदान प्राप्त था के वो पूरी दृड इच्छा करके कीसी के भी सिर पर हाथ रखदेगा तो वो अमर हो जाएगा ..उस राजा ने अपने सैनिको को अमर करना शुरू कर दिया धिरे धीरे सारे सैनिक अमर हो गय इस कारण राजा ने अनेक युध्द जीते ..समय गुजरा और राजा बूढा होकर मर गया..
भाव---हमारे पास भी परमात्मा रूपी शक्ति है इस शक्ति में सब कुछ है ग्यान ,वैरागाय ,आनंद आदी पर हम भी उस राजा की तरह ये शक्ति कही बाहर उपयोग करते रहते हैं ..जैसे मुर्ति आदी में ..हमारी ये शक्ति इतनी अद्भुत है की इसे जहां भी लगावो अपना असर दिखाने लगती है . कइ बार तो सुन्ने में आया है की मूर्तियों में धडकन आदी सुनाई देती है या उन मुर्तियों मे प्रतिकृिया भी दर्ज की गई है जिस कारण अन्य लोग भी उनकी ओर आकर्षित होते हैं .बहोत मुमकिन है की उस मुर्ती में आपके अन्दर का ग्यान व बैराग्य भी जड रूप में उपस्थित हो जाता हो.. पर ये सारी घटनाए उस जड मुर्ती में ही घटित होतीं है जहा आपने अपने अन्दर की परमातमा रूपी शक्ति को धारण कर दिया है..जरा सोचिय अगर वो राजा अपनी शक्ति खुद पर लगाता तो कया ये शक्ति उसपर काम न करती ..इसी प्रकार अगर हम परमात्मा को अपने हृदय में धारण करें तो हमें कैसी कैसी अनुभूतियां होगी...फीर हमे ग्यान के लिय कहीं जाने की आवश्यकता नही सब हमारे अन्दर ग्यान,वैराग्य,आनंद आदि बय आवश्यकता है बाहर से अन्दर मुडने की ,दूैत से अदूैत हो जाने की जो हमारा शुद्ध स्वभाव है कयोंकी हमसे परमात्मा अलग नही है पर हम उसे अलग मान लेते है बाहर कहीं मुर्तियों आदी में ओर ग्यान के लिय भटकते रहते है और एक दिन शरीर त्याग देते हैं..कसतूरी मृग की तरह..अतः सावधान हो जाइये..धारणा सही किजीए...
ब्रम्हाभिन्नत्वविज्ञानं भवमोक्षस्य कारणम्।
येनाद्वितीयमानन्दं ब्रम्ह सम्पद्यते बुधै:।।
ब्रम्ह और आत्मा के अभेद का ज्ञान ही भवबन्धन से मुक्त होने का कारण है, जिसके द्वारा बुद्धिमान पुरुषअद्वितीय आनन्दरूपब्रम्हपद को प्राप्त कर लेता है |
(ऋग्वेद 10.49.1)
केवल एक परमात्मा ही सत्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने वालों को सत्य ज्ञान का देने वाला है । वही ज्ञान की वृद्धि करने वाला और धार्मिक मनुष्यों को श्रेष्ठ कार्यों में प्रवृत्त करने वाला है ।
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
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