--निमाज----निमाज का अर्थ हमारे अध्यातमिक स्तर से हैं यह किसी धर्मविशेष की नही है बल्की हम सब सत्यमार्गीयो के लिय ये अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय है ..आइये जाने हमारी निमाज कया है..
कही निमाज करे छे विध की,दो सरियत एक तरीकत ।
आगू एक हकीक़त,दोए बका मारफत ।।
कुरान में लिखी छः तरह की नमाज का वर्णन किया है ।जिनमे दो शरियत की,एक तरीकत की,एक हकीक़त की और दो अखंड मारफत की है ।
1)शरियत की पहेली नमाज से इन्द्रिया वश में की जाती है ।
2)दूसरी शरियत की नमाज से शरीर को पाक करती है ।
3)तरीकत की नमाज तीसरी है,जो दिल से की जाती है,जिससे पवित्र होकर बैकुठ पहुंचा जाता है ।
4)चौथी नमाज हकीक़त की है,जिस नमाज से अक्षरधाम तक पहुंचा जा सकता है ।
बाकी दो नमाज परमधाम की है,जो रूहानी और छिपी नमाज (बंदगी) है,जो पारब्रह्म परमात्मा के परमधाम की हजुरी नमाज है ।इन दोनों नमाज को मारफती नमाज कहते है ।
ये बातूनी नमाज परमात्मा की प्यारी आत्मांए,जो उनके हृदय रूपी परमधाम में रहती है,यह उनकी नमाज है ।
दो नमाज बातूनी बताई गई है वो एक मारफत की ओर दूसरी मारफत की मारफत की नमाज है ।
पहली नमाज मारफत में हम अपनी आतम से परआतम की नजर से परमधाम के पच्चीस पक्ष को निहारे और अपने प्राण प्रियतम श्री राजजी जो अपनी लाडली श्यामा महारानी और हम सब रूहो के साथ जो इश्कमयी लीला करते है,उसका अनुभव करे ।
दूसरी मारफत की भी मारफत में आत्मा परमात्मा की एकरूपता का गहन से भी गहन बोध होता है इसमे परमधाम , पच्चीस पक्ष , बारह हजार सखीया, आदी आदी का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है..
प्रणाम जी
कही निमाज करे छे विध की,दो सरियत एक तरीकत ।
आगू एक हकीक़त,दोए बका मारफत ।।
कुरान में लिखी छः तरह की नमाज का वर्णन किया है ।जिनमे दो शरियत की,एक तरीकत की,एक हकीक़त की और दो अखंड मारफत की है ।
1)शरियत की पहेली नमाज से इन्द्रिया वश में की जाती है ।
2)दूसरी शरियत की नमाज से शरीर को पाक करती है ।
3)तरीकत की नमाज तीसरी है,जो दिल से की जाती है,जिससे पवित्र होकर बैकुठ पहुंचा जाता है ।
4)चौथी नमाज हकीक़त की है,जिस नमाज से अक्षरधाम तक पहुंचा जा सकता है ।
बाकी दो नमाज परमधाम की है,जो रूहानी और छिपी नमाज (बंदगी) है,जो पारब्रह्म परमात्मा के परमधाम की हजुरी नमाज है ।इन दोनों नमाज को मारफती नमाज कहते है ।
ये बातूनी नमाज परमात्मा की प्यारी आत्मांए,जो उनके हृदय रूपी परमधाम में रहती है,यह उनकी नमाज है ।
दो नमाज बातूनी बताई गई है वो एक मारफत की ओर दूसरी मारफत की मारफत की नमाज है ।
पहली नमाज मारफत में हम अपनी आतम से परआतम की नजर से परमधाम के पच्चीस पक्ष को निहारे और अपने प्राण प्रियतम श्री राजजी जो अपनी लाडली श्यामा महारानी और हम सब रूहो के साथ जो इश्कमयी लीला करते है,उसका अनुभव करे ।
दूसरी मारफत की भी मारफत में आत्मा परमात्मा की एकरूपता का गहन से भी गहन बोध होता है इसमे परमधाम , पच्चीस पक्ष , बारह हजार सखीया, आदी आदी का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है..
प्रणाम जी
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