Tuesday, December 27, 2016

*निस्काम होना कया है?*

निष्काम भक्ति का अर्थ है जिसमें कोई भी कामना ना हो.. इसको समझना थोडा कठिन हो सकता है..कयोंकी हमें जो बताया या रटवाया गया है वो केवल साकाम ही है , इसलिय निष्काम भाव हमारे लिय नया विषय है जिसको पचा पाना थोडा कठिन हो सकता है.. आइये निष्काम भाव को जान्ने का प्रयास करते हैं.. अगर एक लाइन में समझें तो..

*साकाम याने जो हमसे अलग है अर्थात जो हमारे पास नही है उसकि कामना साकाम है..*
*और जो हमसे अलग नही है जो हमारा है उसकी कामना नही होती.. उसके प्रती हम निस्काम रहते है..*
पर केवल इतने से समझ में आने वाला नही है इसलिय इसे एक उदाहरण से समझें ---

*साकाम का अर्थ है केवल परमात्मा को चाहना याने अन्नय भाव!!!*
*जिसे आप निस्काम समझते हो वो साकाम है*
*तो निस्काम कया है*
कया दूध में सफेदी कि कामना है??
कया फूल में सुगंध कि कामना है ??
कया पानी मे प्यास कि कामना है ??
कया पृथ्वी में मिट्टी कि कामना है ??
कया पेड़ मे लकडी कि कामना है ??

उत्तर है नही नही नही

ध्यान दो सवंय से अलग विषय कि कामना होती है .
और सवंय के विषय मे हमारी निरंतर स्थिती रहती है .. ये निष्काम है
जैसे दूध में सफेदी स्थित है याने वो कामना रहीत है वो दूध कि स्थिती है , वो निष्काम ही है सदा से है सदा रहेगी इसमें कामना नही है..

जैसे आपका पांव या हाथ है..कया आप उसकि कामना करते हो ? नही कयोंकि ये आपमें स्थित है ये आपकि स्थिती है.. पांव या हाथ कि कामना वो करता है जिसके पाव या हाथ नही हैं..

*ध्यान देना*

हम आत्मा परामात्मा मे निरंतर स्थित है और परमात्मा आत्मा में स्थित है ये अदूैत भाव आत्मा और परमात्मा का निरंतर संबंध है यही आनंद है ..
जब आत्मा और परमात्मा एकरस, एकदिलि, या अदूैत है तो कामना किसकी .. ये तो आत्मा कि स्थिती है ... इसी भाव में आना निष्काम भक्ती है .
जबतक तुम परमात्मा को खुदसे अलग मानते हो तो तुम्हारी ये मान्यता ही साकाम भक्ति है ..इसलिय उसको पाने कि कामना करते हो, यही कामना ही तो साकाम भक्ती है..परमात्मा को पाने की कामना का आरोप लेना ही साकामता है ...
और जो सवंय मे स्थित है उसके लिय कामना नही होती ये निष्कामता है..इसमें कोई आरोप नही है, बस आप परमात्मा में स्थित हो और परमात्मा आपमें स्थित है ..यही आपकी याने आत्मा की स्थिती है बताओ इसमें कामना कया है..ये भाव ही निष्काम है ..हमें इसी स्थिती मे आना है , तो फिर  निष्काम है ..यही हमारा याने आत्मा का स्वभाव है बस हमें अपने स्वभाव में आना है...

इसी विषय पर श्री प्राणनाथ जी ने कहा है .
*अर्ष तुमहारा मेरा दिल है* और ऐसी अनेकों चौपाइयां है ..इस भाव से ढूंडोगे तो मिल जायेंगी

इसी विषय पर कबीर जी ने भी कहा है ..
*जल में रहकर मीन प्यासी, देख देख आवत मोहे हासी*

*पुर्ण विषय के लिय संगत आव्यश्यक है*
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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