सुप्रभात जी
कालमाया के ब्रह्माण्ड में द्वैत की लीला है अर्थात् जीव (नारायण, त्रिदेव, देवी-देवता, मनुष्य, अन्य चराचर प्राणी) तथा प्रकृति (माया) की लीला है । इसमें जन्म-मरण , सुख-दुःख का चक्र चलता रहता है । स्थूल व शुक्ष्म अहंकार रूपी कड़ी जब तक नहीं छूटती, तब तक संसार झूठा होते हुए भी सच्चा लगता है और उसे कोई छोड़ना नहीं चाहता । जब तक जीव का स्थूल व शुक्ष्म अहंकार नष्ट नहीं होगा तब तक आवागमन का चक्र समाप्त नहीं हो सकता । अतः नारायण से लेकर जीवों तक यह सारी सृष्टि मोह रूप है । ब्रह्मज्ञान,तारतम,अदूैत या प्रेम का मार्ग पकड़कर ही इस स्थूल व शुक्ष्म रूपी भवसागर को पार किया जा सकता है ।
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
कालमाया के ब्रह्माण्ड में द्वैत की लीला है अर्थात् जीव (नारायण, त्रिदेव, देवी-देवता, मनुष्य, अन्य चराचर प्राणी) तथा प्रकृति (माया) की लीला है । इसमें जन्म-मरण , सुख-दुःख का चक्र चलता रहता है । स्थूल व शुक्ष्म अहंकार रूपी कड़ी जब तक नहीं छूटती, तब तक संसार झूठा होते हुए भी सच्चा लगता है और उसे कोई छोड़ना नहीं चाहता । जब तक जीव का स्थूल व शुक्ष्म अहंकार नष्ट नहीं होगा तब तक आवागमन का चक्र समाप्त नहीं हो सकता । अतः नारायण से लेकर जीवों तक यह सारी सृष्टि मोह रूप है । ब्रह्मज्ञान,तारतम,अदूैत या प्रेम का मार्ग पकड़कर ही इस स्थूल व शुक्ष्म रूपी भवसागर को पार किया जा सकता है ।
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प्रणाम जी
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