*बोहोत प्रयास के बाद भी मेरा मन परमात्मा में नहीं लगता, क्या करूं ? कृपया समाधान करें ।*
*प्रयास मत करें मन नहीं लगेगा । आजतक किसी का नहीं लगा । जो कहते हैं की मन लगता है वो झूठ कह रहें हैं और जो कहते है मन लगाओ वो तुम्हे भ्रमित कर रहे है*
*मन के दूारा परमात्मा को नही पाया जा लकता*
एक उदाहरण से समझें .. पहले आप (अहम)हो फिर आपका मन है, इसको इस प्रकार समझो की आपका शरीर और उसके हाथ पांव, जैसे शरीर के उप अंग उसके हाथ पांव होते हैं वैसे ही अहम के उप अंग में मन चित बुद्धि आदि हैं .. अब अगर आप सोची की आप तो मजदूरी करो ओर आपका हाथ या पांव घर पर विश्राम कर के आनंदित रहे तो क्या ये सम्भव है ? कयोंकी आपके हाथ पांव आपसे आलग होकर कार्य कैसे करेंगे बताओ कर सकते हैं कया ठीक वैसे ही हम कर रहे हैं हम खुद अहम रूप में प्रकृती के साथ आपनी स्थिती बनाऐ हुये हैं और कह रहे है हमारा मन परमात्मा मे लग जाय ,अरे मन आपका ही है ये वहीं रहेगा जाहां आप हो जैसे आपके हाथ पांव वही है जहा आप हो वैसे ही मन भी है , ये मन परमात्मा में कैसे लगेगा जब इसका कोइ खुदका अस्तितव ही नही है..क्योंकि मै अहम हूं तो मन है, इसमें मन का क्या दोष ? जबतक आप हो तो बाल(मन) उगेंगे ही इनको रोकना या समाप्त करना है तो खुद को समाप्त करदो खुद(अहम) नहीं रहोगे तो बाल उगेंगे ही नहीं..नही ये मन वहीं रहेगा जहां अहम हो । अहम सत्ता का घोतक है ओर परमात्मा आनंद है । सत्ता के लय के पश्चात आनंद है । *आनंद है, आनंद आएगा ऐसा नहीं है* आप अहम नहीं हो तो आप आनंद हो, ओर आप अहम हो तो आप सत्ता हो । अहम के नहीं होने में आनंद है, ओर अहम के होने में माया है सत्ता है, मन आदि सब है, अब सोचो कितनी मर्खता कर रहे हो कि अहम के होने बाद की स्थिति याने मन को अहम के नहीं होने की स्थिति(आनंद) में लगाना चाहते हो, ये वैसा ही है जैसे आप चाहते हो कि आपकी मृत्यु के बाद की स्थिति को आपका हाथ पहले ही देख ले । खुद रह कर मनको परमात्मा मे लगाने में अनेक जीवन व्यर्थ गवां दिय ..और कह रहे हो की मन परमात्मा में नही लगता ...इसलिय 80 हजार साल समाधी के बाद भी मन वही आया जाहां विशवामित्र की सवंय की स्थिती थी, इसलिय इतनी तपस्या के बाद भी मन नही लगा परमात्मा में .... अरे 80 हजार नही करोडों वर्ष लगादो फिर भी कया होगा ..इसमें मनकी कया गलती इसलिय मन को नही लगाना है अहम समाप्त करना है । *बस यही बात गांठ बांधलो ओर सही दिशा में लग जाओ*
अब उपनिषदों का यह कथन हमारी समझ में आजायेगा और वेद भी कहता यही कहता है..
उपनिषदों का कथन है कि वह ब्रह्म मन तथा वाणी से परे है, अतः उसे इन्द्रियों, मन, वाणी तथा बुद्धि के साधनों से प्राप्त नहीं किया जा सकता ।*
( कठो. २/६/)
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*प्रयास मत करें मन नहीं लगेगा । आजतक किसी का नहीं लगा । जो कहते हैं की मन लगता है वो झूठ कह रहें हैं और जो कहते है मन लगाओ वो तुम्हे भ्रमित कर रहे है*
*मन के दूारा परमात्मा को नही पाया जा लकता*
एक उदाहरण से समझें .. पहले आप (अहम)हो फिर आपका मन है, इसको इस प्रकार समझो की आपका शरीर और उसके हाथ पांव, जैसे शरीर के उप अंग उसके हाथ पांव होते हैं वैसे ही अहम के उप अंग में मन चित बुद्धि आदि हैं .. अब अगर आप सोची की आप तो मजदूरी करो ओर आपका हाथ या पांव घर पर विश्राम कर के आनंदित रहे तो क्या ये सम्भव है ? कयोंकी आपके हाथ पांव आपसे आलग होकर कार्य कैसे करेंगे बताओ कर सकते हैं कया ठीक वैसे ही हम कर रहे हैं हम खुद अहम रूप में प्रकृती के साथ आपनी स्थिती बनाऐ हुये हैं और कह रहे है हमारा मन परमात्मा मे लग जाय ,अरे मन आपका ही है ये वहीं रहेगा जाहां आप हो जैसे आपके हाथ पांव वही है जहा आप हो वैसे ही मन भी है , ये मन परमात्मा में कैसे लगेगा जब इसका कोइ खुदका अस्तितव ही नही है..क्योंकि मै अहम हूं तो मन है, इसमें मन का क्या दोष ? जबतक आप हो तो बाल(मन) उगेंगे ही इनको रोकना या समाप्त करना है तो खुद को समाप्त करदो खुद(अहम) नहीं रहोगे तो बाल उगेंगे ही नहीं..नही ये मन वहीं रहेगा जहां अहम हो । अहम सत्ता का घोतक है ओर परमात्मा आनंद है । सत्ता के लय के पश्चात आनंद है । *आनंद है, आनंद आएगा ऐसा नहीं है* आप अहम नहीं हो तो आप आनंद हो, ओर आप अहम हो तो आप सत्ता हो । अहम के नहीं होने में आनंद है, ओर अहम के होने में माया है सत्ता है, मन आदि सब है, अब सोचो कितनी मर्खता कर रहे हो कि अहम के होने बाद की स्थिति याने मन को अहम के नहीं होने की स्थिति(आनंद) में लगाना चाहते हो, ये वैसा ही है जैसे आप चाहते हो कि आपकी मृत्यु के बाद की स्थिति को आपका हाथ पहले ही देख ले । खुद रह कर मनको परमात्मा मे लगाने में अनेक जीवन व्यर्थ गवां दिय ..और कह रहे हो की मन परमात्मा में नही लगता ...इसलिय 80 हजार साल समाधी के बाद भी मन वही आया जाहां विशवामित्र की सवंय की स्थिती थी, इसलिय इतनी तपस्या के बाद भी मन नही लगा परमात्मा में .... अरे 80 हजार नही करोडों वर्ष लगादो फिर भी कया होगा ..इसमें मनकी कया गलती इसलिय मन को नही लगाना है अहम समाप्त करना है । *बस यही बात गांठ बांधलो ओर सही दिशा में लग जाओ*
अब उपनिषदों का यह कथन हमारी समझ में आजायेगा और वेद भी कहता यही कहता है..
उपनिषदों का कथन है कि वह ब्रह्म मन तथा वाणी से परे है, अतः उसे इन्द्रियों, मन, वाणी तथा बुद्धि के साधनों से प्राप्त नहीं किया जा सकता ।*
( कठो. २/६/)
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ए मैं मैं क्यों ए मरत नहीं,और कहावत है मुरदा। आड़े नूर जमाल के, एही है परदा।।
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