Tuesday, January 30, 2018

एक साधु को उसके मित्रों ने पूछा, ''यदि शत्रु आप पर हमला कर दें, तो आप क्या करेंगे?'' वह बोला, ''मैं अपने मजूत किले में जाकर बैठा रहूंगा।'' यह बात उसके शत्रुओं के कान तक पहुंच गई। फिर, एक दिन शत्रुओं ने उसे एकांत में घेर लिया और कहा, ''महानुभाव! वह मजबूत किला कहां है?'' वह साधु खूब हंसने लगा और फिर अपने हृदय पर हाथ रखकर बोला, ''यह है मेरा किला। उसके ऊपर कभी कोई हमला नहीं कर सकता है। शरीर तो नष्ट किया जा सकता है- पर जो उसके भीतर है- वह नहीं। वही मेरा किला है। मेरा उस आत्माके मार्ग को जानना ही मेरी सुरक्षा है।''

जो व्यक्ति इस मजबूत किले को नहीं जानता है,उसका पूरा जीवन असुरक्षित है। और, जो इस किले को नहीं जानता है, उसका जीवन प्रतिक्षण अनेक काम क्रोध आदी विकार रूपी शत्रुओं से घिरा है। ऐसे व्यक्ति को अभी शांति और सुरक्षा के लिए कोई शरणस्थल नहीं मिला है। और, जो उस स्थल को बाहर खोजते हैं, वे स्त्रूओं को ही खोजते हैं,


जीवन का वास्तविक परिचय आत्मा में प्रतिष्ठित होकर ही मिलता है, क्योंकि उस बिंदु के बाहर जो परिधि है, वह मृत्यु से निर्मित है।


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