Monday, April 16, 2018

सही मार्ग

*सर्वविदित है कि आनंद ही ब्रह्म है, ओर ये भी सर्वविदित है कि बाह्य मार्ग से नहीं मिलेगा, तो शुरुआत कैसे करें ? मैं ध्यान करता हूं कृपया इसी मार्ग में मार्ग दर्शन करें ।*

ध्यान ही प्राथमिक ओर उचित मार्ग है, पर कभी भी मन की कल्पना का ध्यान ना करें, किसी भी व्यक्ति, स्थान या मंत्र का ध्यान न करें, किसी भी देवी देवता, परमात्मा, या आत्मा का रूप बना कर ध्यान न करें । मन से परमधाम न बनाएं, न आत्मा का रूप बनाएं न परमात्मा का । ये सब मन का खेल है ।

*तो क्या करें*

ध्यान में दो भाव होते हैं.. अनुभव और आनंद |
ध्यान में जो बाहर या अंदर दिख रहा है वो सब ध्यान में होने वाले अनुभव हैं..ये सब मिथ्या है..मनका खेल है..यह बाह्य विषय है..

और जो ध्यान में आनंद महसूस होता है वह आपका आन्तरिक विषय है.. यही सत्य है , यही पकड़ना है, यही ध्यान का उदेश्य है..इसी में आगे बढ़ोगे तो सवंय का ध्यान होगा यही चितवनी है..
ध्यान में मन से चित्र बना कर समझते हो कि आनंद उसी में से आ रहा है और आनंद की सही दिशा की खोज नहीं करते कभी भी ।

यह भेद ना जान पाने के कारण हम ध्यान में होने वाले अनुभव में ही आनंद को आरोपित कर लेते है और आत्मिक विषय से वंचित रह जाते हैं..
*आनंद को मित्थया में ही आरोपित करके मित्थया में ही आनंद ढूंडने में जन्म गवा देते है..*
खोज सही रखो, केवल आनंद पकडो जो तुम सदा से चाहते हो.. *पर खोज तभी समाप्त होगी जब खोजी नहीं रहेगा*
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